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________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ॥ कलशप्रतिष्ठा ॥ चाल ७ - केसरस्नात्र - घसेल केसरनो घोल जलमां नाखी कलशा भरी नमो. कही - "काश्मीरजसुविलिप्तं, कलशं तन्नीरधारयाऽभिनवम् । सन्मनत्रयुक्तया शुचिं, जैनं स्नपयामि सिद्ध्यर्थम् ॥७॥ आ पद्य भणी अभिषेक करवो. तिलक धूप करवो, पुष्प चढावबां. ८ - कर्पूरस्नात्र - कपूरनुं चूर्ण जलमां नाखी ४ कलशा भरी नमोऽर्हत्. कही - शशिकरतुषारधवला, उज्वलगन्धा सुतीर्थजलमिश्रा । कर्पूरोदकधारा, सुमन्त्रपूता पततु कलशे ॥८॥ आ पद्य बोली अभिषेक करवो, तिलक करवू, पुष्प चढावबां, धूप उखेबवो. ९ - कुसुमजलस्नात्र - जलकुंडीमां पुष्पो नांखी ते जलना कलशा भरी नमो० कही - अधिवासितं सुमन्त्रैः, सुमनः किञ्जल्कराजितं तोयम् । तीर्थजलादिसुपृक्तं, कलशोन्मुक्तं पततु कलशे ॥९॥ आ काव्य बोली अभिषेक करवो, तिलक करवू, फूल चढाबवां, अने धूप उखेबवो. ए पछी पंचरत्ननी पोटली तथा श्वेत अथवा पीला सरसवोनी पोटली कलशने बांधवी, पोताना डावा हाथ बडे जमणा हाथने कांडामाथी पकडी ते बड़े चन्दननुं कलशना सर्व भागोमां विलेपन करीने पुष्पो चढाववां, ऋद्धि वृद्धि युक्त मीढलफल बांधवू अने चक्रमुद्राए कलशनो सर्वाङ्ग स्पर्श करवो, पछी धूप उखेवीने ४ स्त्रियो द्वारा पुखणां कराबवां. प्रतिष्ठागुरुए सुरभि १ परमेष्ठी २ गरुड ३ अंजलि ४ प्रवचन ५ आ पांच मुद्राओ देखाडवी, अने सूरि मंत्रथी अथवा तो ."ॐ स्थावरे तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा ।" आ मंत्र वडे ३ वार अधिवासना करवी, मंत्र भणीने ३ वार वासक्षेप करी कलश उपर रक्तवस्त्र आच्छादन करवू, ते उपर जम्बीरादि | ॥ ३७९ ॥ For Private Personal Use Only Jain Education International Twww.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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