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________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ श्री पादलिप्तसूरिप्रणीतः प्रतिष्ठाविधिः ॥ ए पछी चवरी (चोरी) मांडवी, तेमां जवारा, वेदी, आदि ८ मंगलिक द्रव्यो स्थापन करवां, चवरी अने वेदीने रक्तसूत्र वडे वींटीने | मजबूत करवी, चवरीना ४ खुणाओमां रक्षानिमित्ते वज्ररूपी ४ बाणो अथवा भालडिओ (नाना भालाओ) अखमंत्रे अभिमंत्रित करीने खोसवी. ए पछी रूपलावण्यवती अने सुन्दरवेशवाली ४ अथवा ८ युवति सधवा स्त्रियोए चबरीना ४ खूणाओमां ४ कलशो स्थापन करवा, कलशोना मुखे गोलना पिंडो मूकवा अने गलामां सुहालीनी माला पहेराववी, पछी कासानी थालीमा राखेल (दुर्वा) थ्रो, दहि, अक्षत, तराक आदि उपकरणो सहित सुवर्णादि दान देती ते ४ अथवा ८ स्त्रियो रक्तसूत्रबडे स्पर्श करीने पुंखणां करे, साथेनी बीजी स्त्रियो मंगल गीत गावे, आ स्त्रियोनो वेष सारामां सारो होवो जोईये, आ पुंखवानी क्रिया करनारी स्त्रिओए यथाशक्ति सुवर्णादिनुं दान कर, जोईये, जिनने पुंखनारी स्त्रियो कदापि काले वैधव्य अथवा दारिद्यपणाने पामती नथी. पुंग्वणां करनारी स्त्रियोने गोल लवण आदि आपीने तेमनो सत्कार करवो, एमना हाथे ज लूणपाणी अने आरति पण उतराववी. ते पछी संघसहित चैत्यवन्दन करवू, वर्धमान स्तुति कहेवी, त्रण स्तुतिओ कह्या पछी 'सिद्धाणं बुद्धाणं ' कही श्री अधिवासनादेवतायै | करेमि काउसग्गं, अन्नत्य उससियेणं० १ लोगस्स सागरवरगंभीरा सुधीनो काउस्सग्ग करी नमोऽर्हत. कही “विश्वाऽशेष-सुवस्तुषु, मन्त्रैर्याऽजसमधिवसति वसतौ । साऽस्यामवतरतु श्री-जिनतनुमधिवासना देवी ॥१॥" आ स्तुति कहेवी, उपरांत - "प्रोत्फुल्लकमलहस्ता, जिनेन्द्रवरभवनसंस्थिता देवी । कुन्देन्दुशंखवर्णा, देवी अधिवासना जयति ॥१॥" आ स्तुति कहीने बाकीना देवताओना काउस्सग्गो करी स्तुतिओ कही चैत्यवन्दना संपूर्ण करवी. Jan Education In tional For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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