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________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ श्रीशान्तिवादिवेतालीय ॥ ४२६ ॥ अर्हद भिषेक विधिः ।। भूत्वा प्रसन्नमनसो मुनिपादपद्मं, वन्दध्वमायतभवार्णवयानपात्रम् ।।१२।। आ काव्य भणी सर्वने चैत्यवन्दनार्थे बोलावी अभिषिक्त प्रतिमा आगळ विधिपूर्वक चैत्यवंदन करवू वर्धमान स्तुतिओ कहेवी अने | स्तवन कही जयवीराय कहेवा पछी - विहिताभिषेकमभिषे-कवृत्तवृत्तप्रवृद्धसंस्तुतिभिः । सुरवृन्दवन्दितांघे-र्वन्दित्वा भगवतो बिंबम् ॥१३॥ पुनराघोषणापूर्वं,सममेव समाहितः । चितीर्वन्देत पन्द्यानां, देवकाप्टप्रतिष्ठताः ॥१४॥ आ काव्य बोली प्रासादनां प्रतिष्ठित मूलनायक आदि प्रतिमाओने सर्व जणे साथे वन्दन करवू, अने दिक्पालादि आमंत्रित देवोर्नु विसर्जन करवू. विसर्जन-विधि- विसर्जन विधिमां अधिक तैयारीनी आवश्यकता नथी. चेलेत्क्षेपैः पुष्पधूपादिदानैः, सन्मानादीन् दिक्पतीनां विसर्गम् । कृत्वाऽशेषान् शेषदिव्यावतारा-नारात्प्राप्तान् प्रेषयेत्स्वाधिवासान् ॥१५।। आ काव्य भणी दिक्पालोनुं नैवेद्य तेमना वर्णानुसार वस्त्रो (वस्त्रखंडो), पुष्पो (शक्य होय तो पुष्पमालाओ) अने धुप तैयार करीअर्हदभिषेकदर्शित-सांनिध्यनिरस्तकल्मषोल्लाघाः । गच्छन्तु यथास्थानं, ये केचिदुपागता दिव्याः ॥१६॥ आ काव्य भणी प्रत्येक दिक्पालनी दिशामां तेनो प्रिय बलि, प्रिय वर्णनो वस्त्र खंड, पुष्प अथवा पुष्पमाला फेंकवी, तथा धूप उखेववो अने नमस्कार करवो, प्रत्येक दिशामां एज काव्य बोली ते ते दिशापालनो प्रिय बलि, तेना वर्णनुं वस्त्र अने पुष्पमाला फेंकी, धूप उखेवी, नमस्कार मुद्रा देखाडी, विसर्जन करवू. ॥ ४२६ ।। Jan Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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