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॥ कल्याण- कलिका. खं० २॥
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॥ अष्टोत्तरी शतस्नात्र विधिः ॥
॥ ४६४ ॥
के लखेली पूर्वजोनी मूर्तिओ घरोमा पूजाय छे. गलामा पहेरवानी फूल आदिना रूपमा नामांकित पितृमूर्तिओ पण होय छे. आ बधी | पितृमूर्तिओनी प्रतिष्ठाविधि एक सरखीज होय छे.
प्रथम बृहत्स्नातनी विधिथी पूर्व प्रतिष्ठित जिनबिम्ब- स्नात्र करी ते स्नात्रजल मिश्रित पंचामृत वडे त्रणे प्रकारनी पितृ मूर्तिओनो पखाल करबो, छेवटे शुद्ध जले पखाली लूंछीने पछी ते नीचे लखेल प्रतिष्ठा मंत्रबडे वासक्षेप करीने प्रतिष्ठित करवी.
"ॐ नमो भगवओ अरहओ जिणस्स महाबलस्स महाणुभावस्स सिवगइगयस्स सिद्धस्स बुद्धस्स अक्खलिअपभावस्स | तद्भक्तोऽमुकवर्णः, अमुकजातीयः, अमुकगोत्रः, अमुकपौत्रः, अमुकपुत्रः, अमुकजनकः इह मूर्ती अवतरतु अवतरतु संनिहितः तिष्ठतु तिष्ठतु निजकुल्यानां पुत्र भातृव्यपौत्रादीनां जिनभक्ति पूर्वकं दत्तमाहारं वस्त्रं पुण्यकर्म प्रतीच्छतु शान्तिं तुष्टिं पुष्टिं ऋद्धिं वृद्धिं समीहितं करोतु स्वाहा ।" ___आ मंत्र भणीने पितृमूर्तिओने ३-३ बार वासक्षेप करीने प्रतिष्ठित करवी आम पितृमूर्ति प्रतिष्ठित करीने गृहस्थे यथाशक्ति साधर्मिक वात्सल्य करवू अने संघपूजा पण करवी.
(९) तोरण प्रतिष्ठाविधिः तोरण प्रतिष्ठामा बृहत्स्नात्रविधिथी जिनस्नात्र करी मुकुटमंत्रे करी तोरण उपर वासक्षेप करवो, मुकुटमंत्र नीचे प्रमाणे छे--
"ॐ अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋल ल ए ऐ ओ औ अं अः कखगघङ चछजझञ टठडढण तथदधन पफबभम यरलव | शषसह नमो जिनाय सुरपतिमुकुटकोटिसंघहितपदाय इति तोरणे समालोकय समालोकय स्वाहा ।
॥ ४६४ ।।
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