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________________ A ॥ कल्याण ॥ अष्टोत्तरी कलिका. | खं० २ ॥ dh. शतस्नात्र विधिः ।। (१०) जलाशय प्रतिष्ठाविधिः - जलाशयो अनेक प्रकारनां होय छे. तलाव, सरोवर, टांकां, वाव, आदि. आ पैकीना कोइ पण जातना जलाशयनी प्रतिष्ठा करवी होय त्यारे जलाशय बनावनारने चन्द्रबल पहोचतुं होय अने दिवस पण शुभ होय ते, मुहूर्त ले. जलाशय प्रतिष्ठामा पूर्वाषाढा, शतभिषा, रोहिणी, धनिष्ठा आ पैकीनु कोइ नक्षत्र आवतुं होय तो वधारे सारूं. प्रतिष्ठाना दिवसे जलाशय करावनारना घरे प्रथम शान्तिक अने पौष्टिक करवू, ते पछी सर्व उपकरणो लेइ जलाशय उपर ज. जलाशयने फरतां २४ सूत्रतंतुओ वींटीने प्रथम तेनी रक्षा करवी, ते पछी त्यां जिन प्रतिमा स्थापन करी बृहत् स्नात्रविधिथी स्नात्र करवू. तदनन्तर जलाशयमां पंचगव्य नांखी जिनस्नात्र जल नाखवू, ते पछी जलाशयना आगला भागमां लघु नंद्यावर्तनी स्थापना करवी. नन्द्यावर्तना स्थाने मध्यभागमा वरुणनी स्थापना करीने ते सर्वनी पूर्वनी जेम पूजा करवी, वरुणनी विशेष प्रकारे त्रण वार पूजा करवी. ते पछी त्रिकोणाकार अग्निकुंडमां अमृत मधु पायस अने विविध फलोवडे नन्द्यावर्तमां स्थापित देवताओना नाम मंत्रो 'प्रणवादि स्वाहान्त' नामो बड़े होम करवो, वरुणना नाम मंत्र वडे ए सिवाय १०८ आहुतिओ वधारे देवी. आहुति आपतां वघेल सर्व जलाशयमां नांखवू. ते पछी प्रतिष्ठाचार्य पंचामृतनो कलश हाथमा लेइ जलाशयमां तेनी धारा देतां - “ॐ वं वं वं वं वं वलप वलिप् नमो वरुणाय समुद्रनिलयाय मत्स्यवाहनाय नीलाम्बरधराय अत्र जले जलाशये वा अवतर २ सर्व दोषान् हर हर स्थिरी भव स्थिरी भव ॐ अमृतनाथाय नमः ।" आ मंत्र ७ वार भणे, एज मंत्र भणीने तेमां पंचरत्न स्थापन करे. अने ए मंत्रपाठ पूर्वक वासक्षेप करी, जलाशयनी प्रतिष्ठा करे. For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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