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________________ | जीर्णो ।। कल्याणकलिका. खं. २॥ | विधिः ॥ | आपीने भगवानने विज्ञप्ति करे - "भगवन् ! बिंबमिदमशेषदोपावहमस्य चोद्धारे सति शान्तिः स्यादिति भगवतोक्तमतोऽस्य समुद्धाराय समुद्यतं मामा- | तिष्ठ।" "एवं कुरु." आ प्रमाणे विज्ञप्ति करी आज्ञा मेलवीने सुवर्णादिनो एक कलश गलेल जलथी भरीने, तेने चन्दन, पुष्प, अक्षतो बडे पूजी मूल मंत्र वडे अभिमंत्रित करी, मुद्रा देखाडीने ते जलकलशे देवनो अभिषेक करवो... ते पछी बिम्बने स्थानथी दूर करवा निमित्ते मूल मंत्रनो एक हजार जाप करवो अने १०८ सुवर्णना पुष्पो बडे बिम्बनी पूजा करवी, ए बधुं कर्या पछी प्रतिमानी पासे आवीने प्रतिमाना शरीरमा रहेल सत्त्वने नीचे प्रमाणे संभलावे - "प्रतिमारूपमास्थाय, येनादौ समधिष्ठिता । स शीघ्रं त्यक्त्वा, यातु स्थानं समीहितम् ॥१॥" आ प्रमाणे कहीने - "ॐ विसर विसर स्वस्थानं गच्छ गच्छ ।" आ मंत्र बोली अर्ध देइने, प्रतिमाधिष्ठायक देवविशेषतुं विसर्जन करवू. ते पछी सुवर्णना ओजारने अभिमंत्रित करी, ते बडे उत्थापन करी, सुवर्णना पाशवाली दोरी बडे शिखामां बांधीने हाथी आदिनी सवारी करावीने सर्व लोकोनी साथे – 'शान्तिर्भवतु" । आ प्रमाणे बोलतां देवने बहार लइ जइ, जो बिंब पाषाण- होय तो अगाध जलमां अथवा तो म्होटा पर्वतमा भण्डार, जो प्रतिमा माटीनी होय अथवा रत्नमयी होवा छतां अग्नि विगेरेमा दाझवाथी तेजहीन अने स्थानच्युत थइ गइ होय तो तेने पण पूर्वनी जेम परठवी देवी. मा || २७१ ।। Jain Education Intern al For Private & Personal Use Only थानww.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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