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॥ कल्याण- कलिका. खं० २॥
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४, जासूल, २ दमणो-मरुओ, ५ पीली चमेली या पीतपुष्प, १ पीलो चंपो, मालती-चमेली १, जाइ पंचवर्ण पुष्प, १ मुचकुंद, १ पीतकणेर। |al
आलेखन, पूजनना द्रव्यो घसी तैयार करेलां । श्वेत चन्दन १, सूखड ८ लाल चन्दन २। केसर ५। गोरोचन २। वासचूर्णं वासक्षेप | ॥ तृतीया३। कंकु ३। यक्षकर्दम । अगर कस्तूरी ५। चन्दन बरास ३॥ चन्दन कपूर । चन्दन केसर कस्तुरी २। अगर चन्दन २। अगर वास
हिके १। ग्रहपूजनमां गणवानी मालाओ-(परवालानी, श्वेत स्फटिकनी, कहेरवांनी, अकलबेरनी अने गोमेद अथवा सिन्दुरिया स्फटिकनी, ए | | दिक्पालामाला, ग्रह पूजनमां गणाय छे. श्वेत स्फटिकने बदले रूपानी अने कहेरवानी बदले सोनानी माला पण चाली शके छे.
दिपूजनसूचना - पूजापो तैयार कर्या पछी प्रथम पाटलाने शुद्ध जल बडे धोइ धूपीने शुभ चोघडियामां पूजन चालू करवू. कोष्टकमां आपेल
विधि ॥ अनुक्रम प्रमाणे प्रथम आलेखन करी, सुगंधि पदार्थो बड़े पूजन करवू.
पूजन विधि - प्रथम नीचे लखेल मंत्र बडे क्षेत्रपाल- आह्वान कर. -
ॐ क्लौँ ब्लौँ स्वाँ लाँ ह्रीँ भुवनपालाय माणिभद्राय क्षेत्रदेवताय यक्षाधिपतये गजवाहनाय खड्गहस्ताय पाशायुधाय सपरिच्छदाय, अत्र श्रीजम्बूद्वीपे भरतक्षेत्रे अमुकनगरे अमुकगृहे जिनबिम्बप्रतिष्ठामहोत्सवे आगच्छ आगच्छ, पूजां गृहाण गृहाण, पूजायामवतिष्ठतु स्वाहा ।
ए पछी पुष्पाक्षतनी अंजलि भरीने भोः क्षेत्रपाल ! जिनपप्रतिमाङ्कभाल !, दुष्टान्तकाल ! जिनशासनरक्खपाल ! पुष्पाक्षतप्रवरचन्दनवास धूप-भोगं प्रतीच्छ जिनवराऽभिषेककाले ॥१।। ॐ क्षा क्षों यूँ क्षौँ क्षः क्षेत्रपालं पूजयामि ।
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