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________________ ॥ कल्याण- कलिका. खं० २॥ ॥ ११२ ॥ भा ४, जासूल, २ दमणो-मरुओ, ५ पीली चमेली या पीतपुष्प, १ पीलो चंपो, मालती-चमेली १, जाइ पंचवर्ण पुष्प, १ मुचकुंद, १ पीतकणेर। |al आलेखन, पूजनना द्रव्यो घसी तैयार करेलां । श्वेत चन्दन १, सूखड ८ लाल चन्दन २। केसर ५। गोरोचन २। वासचूर्णं वासक्षेप | ॥ तृतीया३। कंकु ३। यक्षकर्दम । अगर कस्तूरी ५। चन्दन बरास ३॥ चन्दन कपूर । चन्दन केसर कस्तुरी २। अगर चन्दन २। अगर वास हिके १। ग्रहपूजनमां गणवानी मालाओ-(परवालानी, श्वेत स्फटिकनी, कहेरवांनी, अकलबेरनी अने गोमेद अथवा सिन्दुरिया स्फटिकनी, ए | | दिक्पालामाला, ग्रह पूजनमां गणाय छे. श्वेत स्फटिकने बदले रूपानी अने कहेरवानी बदले सोनानी माला पण चाली शके छे. दिपूजनसूचना - पूजापो तैयार कर्या पछी प्रथम पाटलाने शुद्ध जल बडे धोइ धूपीने शुभ चोघडियामां पूजन चालू करवू. कोष्टकमां आपेल विधि ॥ अनुक्रम प्रमाणे प्रथम आलेखन करी, सुगंधि पदार्थो बड़े पूजन करवू. पूजन विधि - प्रथम नीचे लखेल मंत्र बडे क्षेत्रपाल- आह्वान कर. - ॐ क्लौँ ब्लौँ स्वाँ लाँ ह्रीँ भुवनपालाय माणिभद्राय क्षेत्रदेवताय यक्षाधिपतये गजवाहनाय खड्गहस्ताय पाशायुधाय सपरिच्छदाय, अत्र श्रीजम्बूद्वीपे भरतक्षेत्रे अमुकनगरे अमुकगृहे जिनबिम्बप्रतिष्ठामहोत्सवे आगच्छ आगच्छ, पूजां गृहाण गृहाण, पूजायामवतिष्ठतु स्वाहा । ए पछी पुष्पाक्षतनी अंजलि भरीने भोः क्षेत्रपाल ! जिनपप्रतिमाङ्कभाल !, दुष्टान्तकाल ! जिनशासनरक्खपाल ! पुष्पाक्षतप्रवरचन्दनवास धूप-भोगं प्रतीच्छ जिनवराऽभिषेककाले ॥१।। ॐ क्षा क्षों यूँ क्षौँ क्षः क्षेत्रपालं पूजयामि । ॥ ११२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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