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॥ कल्याणकलिका. खं० २॥
॥ प्रस्ताबना ॥
आपवानी इच्छा व्यक्त करेल होबाथी आ भागमां बीजा कोइनी सहायता स्वीकारी नथी, ज्यारे बीजा भाग माटे दशथी ओछी नकलोनी सहायता स्वीकारवामां आवी नथी, मात्र पांच पांचसो कोपीथी लोक मांगणीने पहोंचाशे नहि एम जणातां प्रकाशक समितिए वधारानी पांच पांचसो नकलो कढावी छे, जे अधिकारिओने लागत किम्मते ज अपाशे एवो निर्धार करेल छे. जेटली नकलोनी किम्मत संघो तथा सद्गृहस्थो तरफथी मळेली छे तेटली नकलो एना अधिकारिओने बिना मूल्ये आपवानो निर्णय थयो छे पण अधिकारी-अनधिकारीनो निर्णय ए माटे नियुक्त थयेल समिति द्वारा थशे अने ए निर्णय प्रकाशक समिति उपर जतां पुस्तको मार्गखर्च लइने तेमने मोकलाशे.
पुस्तकना संपादनमा उपर्युक्त विद्वान मुनिवरोए यथाशक्य परिश्रम कर्यो छे, छतां शरतचूक, दृष्टिदोष के प्रेसकर्मचारिओनी बेदरकारीथी जे कोइ अशुद्धिओ रही जवा पामी छे तेनुं शुद्धिपत्रक आपेल छे, जे जोइने वाचकगण रहेल अशुद्धिओने सुधारी लेशे.
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२-बीजा खंडनो उपोद्घात.
प्रतिष्ठाकल्पो अने विधिविधानो उपर दृष्टिपात'प्रतिष्ठाकल्प' ए विधिशास्त्रनो एक महत्वपूर्ण विभाग छे. 'व्रतविधि' 'तपविधि' के 'मंत्रविधि' आदि 'विधि'ओ प्रायः व्यक्ति विशेषनी साथे संबद्ध होय छे, ज्यारे 'प्रतिष्ठाविधि'नो संबन्ध घणे भागे संघ साथे होय छे, भले प्रतिष्ठाकारक व्यक्ति विशेष होय छतां प्रतिष्ठा वस्तु ज एवी छे के एनो प्रभाव संघ, गाम अने कदाचिद् देश उपर पण पडी जाय छे, आधी 'प्रतिष्ठाशास्त्र' केटलुं महत्त्वपूर्ण छे ए समजाववानी भाग्ये ज आवश्यकता होइ शके.
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