________________
॥ कल्याण
कलिका. सं० २ ॥
।। २९५ ।।
Jain Education International
वड, उंबर, पीपल, चंपो, आशोपालव, कदंब, आंबो, जांबू, बकुल (बोलसिरी), अर्जुन, पाडल, वेत्र, पलाश, आदि (नीछाल) । मृत्तिकावर्ग - उद्देहीना राफडानी, पर्वतना शिखरनी, नदीना वे कांठानी, महानदीना संगमनी, डाभमूलनी, बिल्वमूलनी, चोहटानी (चौटानी), हाथीदांतनी, वृषभशृंगनी, राजद्वारनी, पद्मसरोवरनी अने एकवृक्ष आदिनी जुदी जुदी माटी । पानीयमार्ग गंगा-यमुनामही- नर्मदा- सरस्वती-तापी- गोदावरी आदि नदीओ अने समुद्र, पद्मसरोवर तथा ताम्रपर्णी नदीसंगम आदि जलाशयोनुं पाणी. औषधिवर्गसहदेवी, जया, विजया, जयन्ती, अपराजिता, विष्णुक्रान्ता, शंखपुष्पी, बला, अतिबला, हेमपुष्पी, विशाला, नाकुली, गंधनाकुली, सहा, वाराही, शतावरी, मेदा, महामेदा, काकोली, क्षीरकाकोली, कुमारी भूइरींगणी, उभीरींगणी, चक्रांका, मोरशिखा, लक्ष्मणा, दूर्वा, दर्भ, पतंजारी, गोरंभा, रुद्रजटा, लज्जालु, मेषशृंगी अने ऋद्धिवृद्धि, आदि औषधिओ । अष्टकवर्ग वज्र, लोध्र जेठीमधु, कूठ, देवदारु, खसमूल, ऋद्धिवृद्धि अने शतावरी, ए ८ औषधिओ । अष्टकवर्गद्वितीय - मेदा, महामेदा, काकोली, क्षीरकाकोली, जीवक, ऋषभक, नखी अने महानखी, ए बीजी ८ औषधिओ. सर्वौषधिवर्ग प्रियंगु, सुगंधीवालो, आंबला, जावंत्री, हलदर, ग्रंथिपर्णक (गठवण), नागरमोथ अने कूठ आदि सर्वौषधि । गन्धवर्ग शिलारस, कूठ, जटामांसी, मुरमांसी, श्वेतचंदन, अगर, कर्पूर, नखला अने पूतिकेशा आदि गन्धो। वास - श्वेतचंदन, केसर, कर्पूर (बरास) थी बनेल वासचूर्ण अर्थात् वासक्षेप । मुद्रिकाओ - ( आचार्य इन्द्रादिविधिकारयोग्य) । मींडलफलो (कांकणयोग्य) । रक्तसूत्र (लाल रंगे रंगेल सूत्र अथवा गेवासूत्र ) । ऊन कांतेली । लोहनी मुद्रिका । ऋद्धिवृद्धिसहित कांकणो । जवनी मालाओ । तराको (पूतराको सूत्रनी कोकडी भरेला ) । मेनशिल । गोरोचन । श्वेतसर्षपो ( अथवा पीला सर्पपो, अर्ध तथा रक्षा पोटली योग्य) । धोली पछेडी नं० २ । नन्द्यावर्तना माटलानुं आछादन वस्त्र (श्वेत) । प्रतिमाने पडदो करवानुं वस्त्र । फुटकर वस्त्रो (नील पीत रक्त आदि रंगनां ) | घंट अने घंटडिओ । धूपधाणां । कांसानी वाटकी । रूपानी वाटकी। सोनानी सली । आरीसो ( दर्पण) ।
For Private & Personal Use Only
-
॥ श्री पाद
लिप्तसूरि
प्रणीतः
प्रतिष्ठा
विधिः ॥
।। २९५ ।।
www.jainelibrary.org