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॥ कल्याणकलिका. खं० २॥
आ मंत्र बोलीने अभिषेक करवो अने अन्तमा - सर्वमंगलमांगल्यं, सर्व कल्याणकारणम् । प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम् ॥१॥ आ मंगल श्लोक बोलीने समाप्ति करवी.
इति अष्टोत्तरी स्नात्रविधिः संपूर्णः
|| अष्टोत्तरी शतस्नात्र विधिः ॥
॥ अथ अष्टोत्तरशतस्नात्रविधिः ॥ (सत्तरमा सैकाना पूर्वार्धमां चालती')
उपकरणो (१) प्रतिमा ४ "आदिनाथ १ अजितनाथ २ शान्तिनाथ ३ अने पार्श्वनाथ ४ नी पंचतीर्थी अथवा चोवीशी" (२) 'प्रणालियो' | बाजोट १ (३) कलश ८ (४) कुंडी १ 'पखालना पाणी माटे' (५) कोरो कुंभ १ (६) कुंडी १ “कलश भरवाने" (७) धूपधाणुं १ (८) दियावडयुक्त वस्त्र २ "एक फलादि ढोवा, बीजुं कुंभ हेठे मूकवांने" (९) श्रीफल ४ प्रतिमा आगल ढोवा, श्रीफल ३ बीजा कुंभ उपर ग्रह उपर अने दिक्पालो उपर मूकवा, कुल ७. (१०) कुंभ उपर ढांकवा 'रातुं वस्त्र' गज १ (११) नव ग्रहोने माटे वस्त्र गज ९ धोलुं गज २ रातुं गज २ पीलुं गज १ छींट गज १ कालु गज ३ (पाठान्तरे नीलुं गज ३ कालु गज १) (१२) दोकडा ९ (त्रांबाना पैसाना अडधियां) (१३) सोपारी ९ (१४) पान ९ (१५) चोरवानी ढगली नव ९ (१६) दिक्पालोना पाटला उपर १॥ सवा | १. संवत् १८४८ फाल्गुन बदि ५ भौमवारे । शुभ भवतु । आदर्श पुस्तक अंतिम लेख पुष्पिका ।। २. संवत् १६३९ ना वर्षमां लखेली प्रति उपरथी लीधी छे
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॥ ४४३ ।।
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