SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 288
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ अने स्तुतिओ पण नन्दीनी कहेवी. स्तवनने स्थाने शान्ति (अजितशान्ति) स्तब कही 'जयवीरायः' कहेवा. ___ ए पछी खमासमण दइ इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! क्षेत्रदेवता आराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं करूं ? इच्छं, क्षेत्रदेवता आराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं अन्नत्यः' १ लोगस्स सागरवरगंभीरा सुधीनो काउस्सग्ग करी पारी उपर १ नोकार प्रकट पूरो कहेवो. बली खमासमण दइ इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! क्षुद्रोपद्रव उवसमावणी काउस्सग्ग करुं ! इच्छं, क्षुद्रोपद्रव उवसमावणी करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्य०, १ नोकार, १ उवस्सग्गहर, १ लोगस्स सागरवर गंभीरा सुधी, आ त्रणनो काउस्सग्ग करी पारी उपर १ नवकार प्रकट कहेवो. त्रीजी वार खमासण दइ इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! कंकणछोटनार्थ काउस्सग्ग करुं ? इच्छं, कंकणछोटनार्थं करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्य०, १ नवकारनो काउस्सग्ग करयो, पारी १ नवकार प्रकट कहेवो. ए पछी सौभाग्य मंत्र भणी कंकण छोडवू, फलादिनी साथे सधवा स्त्रीने खोले मेलबुं अने विशेष प्रकारे गुरुभक्ति अने संघभक्ति |॥ दशमाहिके अञ्जनशलाकाप्रतिष्ठाविधि ॥ ॥ २१२ ॥ थान करवी. ॥ इति कंकण छोटण विधि । ॥ २१२।। आ कंकण छोटन विधि पंदरमा सैकामां लखायेल एक प्राचीन पत्रना आधारे लखी छे. Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy