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________________ । कल्याण ॥ अष्टमा कलिका. कहिके अष्टा दश अभि खं० २॥ ॥ १८२ ॥ विधि ॥ सौषधिषु निवसत्यमृतमिदं सत्यमर्हदभिषेके । तत्सर्वौषधिसहितं, पञ्चामृतमस्तु वः सिद्धयै ॥५॥ ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा । पंचामृतनो अभिषेक कर्या पछी कर्पूरना चूर्ण बडे घसी प्रतिमानी स्निग्धता दूर करवी, चीकाश वधारे होय तो साधारण उष्ण जलनो उपयोग करचो, पछी ८ कलशिया शुद्धजले भरी अभिमंत्रित करीने नीचेनुं काव्य बोलतां आठ अभिषेक करवा चक्रे देवेन्द्रराजैः सुरगिरिशिखरे योऽभिषेकः पयोभिर्नृत्यन्तीभिः सुरीभिललितपदगमं तृर्यनादैः सुदीप्तैः । कर्तु तस्यानुकारं शिवसुखजनकं मन्त्रपूतैः सुकुम्भै-बिम्बं जैनं प्रतिष्ठाविधिवचनपरंः स्नापयाम्यत्र काले ॥१॥ आ काव्य प्रत्येक अभिषेके उच्च स्वरे बोलवु. पछी अंग ठूछी चन्दनादि विलेपन करवू. प्रतिमा आगळ पान, सोपारी, फलादि ढोg, ते पछी स्नात्रकारोए आरती मंगल दीवो करवो अने प्रतिष्ठाचार्ये संघ सहित मूलनायकनां चैत्यवन्दन-स्तुतिथी देववन्दन करवू, मूलनायक- चैत्यवंदन स्तुतिओ याद न होय तो नीचेर्नु चैत्यवंदन कहेg - इरियावही करी ने चैत्यवंदन कहेवू. . जय श्रीजिन ! कल्याण-वल्लीकन्दलनाम्बुद !। मुनीन्द्रहृदयाम्भोज-विलासवरषट्पद ॥१॥ तव नाथ ! पदद्वन्द्व-सपारसिका जनाः । सर्वसंपत्सुखश्रीभि-विलसन्ति सदोदयाः ॥२॥ नृलोके चक्रिताद्या याः, स्वर्लोके चेन्द्रतादयः । शिवेऽनन्तसुखाद्यास्ता-स्तव भक्तिवशाः श्रियः ॥३॥ सर्वश्रेयःश्रियां मूलं, ददधर्मं समग्रवित् । योगक्षेमकरो नाथ-स्त्वमेव जगतामसि ॥४॥ त्वमेव शरणं बन्धु-स्त्वमेव मम देवता । तन्मां पाहि भवात्तात ! कुरु श्रेयःसुखास्पदम् ॥५॥ For Private & Personal Use Only ॥ १८२ ।। www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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