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________________ ॥ कल्याण कलिका. ख० २ ।। ।। ४६७ ।। Jain Education International ॥ कल्याण- कलिकायां, साधनखण्डः ३ || परिच्छेद सूची चैत्यवन्दनसंदोहः १, स्तुतयो निखिलेशिनाम् २, पाठयोग्यस्तवा ३, स्तद्वत् स्मरण - मंत्रसंचयः ४ ॥ १॥ प्रतिष्ठोपस्करा नानाविधाः ५ खण्डे तृतीयके || चैत्यवन्दन समुदाय १, चोवीश तीर्थंकरोनी स्तुतिओ २, पाठ करवा लायक स्तोत्रो ३, सात स्मरणो तथा उपयोगी मंत्र संग्रह ४, अने अनेक प्रकारनी प्रतिष्ठानी सामग्रीनी सूचिओ ५ एम आ त्रीजा खंडमां ५ परिच्छेदोनो समावेश कर्यो छे. 1 परिच्छेद १ चैत्यवन्दन संदोह प्रतिष्ठाप्य जिनस्याग्रे, देववन्दनहेतवे । चैत्यवन्दनसंदोहो, न्यस्तोऽयं निजनिर्मितः ||२|| जे जिननी प्रतिष्ठा थइ होय तेमनी आगे देववन्दन करतां ते जिननुं चैत्यवंदन करवानी विधि होइ प्रत्येक जिन प्रतिष्ठा प्रसंगे देववन्दनमां काम लागे एटला माटे आ परिच्छेदमां अमोए स्वरचित चैत्यवन्दन चोवीसी लखी दीधी छे. चैत्य वन्दन संदोह :- अपर नाम चैत्यवन्दन चतुर्विंशतिका । । १ श्रीऋषभ जिन चैत्यवन्दनम् (वसन्ततिलकापरनामकम् उद्धर्षिणी वृत्तम्) । श्रीनाभिराजकुलनन्दनकल्पवृक्षः, संप्राप्तसर्वसुरपूज्यतमत्वपक्षः । उल्लासयन् रविरिवाङ्गिसरोजखण्डं दिश्यात्स शर्म वृषभो भवतामखंडम् ||१|| For Private & Personal Use Only - ॥ चैत्यबन्दन संदोह ॥ ।। ४६७ ।। www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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