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॥ कल्याण कलिका.
खं० २ ॥
।। १५४ ।।
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"ॐ ह्रीँ क्ष्वीँ सर्वोपद्रवं बिम्वस्य रक्ष रक्ष स्वाहा "
आ मंत्र बडे बलि बाकुला मंत्री प्रतिष्ठाना स्थाननी जल सहित बलि उत्क्षेप करवो, धूप उखेववो, चन्दन पुष्प अक्षत उछालवा, पछी सर्व नवीन जिन बिंबो उपर जल सहित कुसुमाञ्जलि
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अभिनवसुगन्धिविकसित-पुष्पौघभृता सुगन्धिधूपाढ्या । बिम्बोपरिनिपतन्ती सुखानि पुष्पाञ्जलिः कुरुताम् ।।
ए काव्य बोलीने गुरुए क्षेपवी, बने वचली आंगलिओ उंची करी रौद्रदृष्टिथी नवीन बिंबोने 'तर्जनी' मुद्रा देखाडवी, अने श्रावके डाबा हाथमां जल लई ‘“ज्लौं म्लौँ” उच्चारणपूर्वक प्रतिमाने आछोटवु, पछी गुरुए-
“ॐ ह्रीँ क्ष्वीँ सर्वोपद्रवं बिम्बस्य रक्ष रक्ष स्वाहा ।" आ मंत्रोच्चारण पूर्वक बिंबने दृष्टिदोष निवारणार्थ 'वज्रमुद्रा, गरुडमुद्रा अने मुद्गरमुद्रा' बडे ३ बार कवच करवो अने अज मंत्रथी दिग्बंधन पण कर.
श्रावके शण १, कुलथ २, राइ ३, जब ४, सरसव ५, कांग ६ अने अडद ७; आ सात धान्योनी ऋण ऋण मुष्टि बिंबो उपर नाखवी, अने कुलदेवी अंबानी पूजा करवी. पछी -
‘“संसारद्रुमदावपावकमहाज्वालाकलापोपमं ध्यातं श्रीमदनन्तबोधकलितैस्त्रैलोक्यतत्त्वोपमम् । श्रीमच्छ्रीजिनराट्रप्रसूतिसमयस्नानं मनः पावनं, कुम्भैर्नः शुभसंभवाय सुरभिद्रव्याढ्यवाः पूरितैः || १ || " " नमस्त्रिलोकीतिलकाय लोका-लोकावलोकैकविलोकनाय । सर्वेन्द्रवन्द्याय जितेन्द्रियाय, प्रसृतभद्राय जिनेश्वराय || २ || "
“ॐ ह्रीं ह्रीँ हूँ हूँ ह्रः अर्हं तीर्थंकरपरमदेवाय ह्रीँ मातृकुक्ष्याः प्रसवाय जगज्जोतिष्कराय अर्हते नमः स्वाहा ।”
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॥ सप्तमा
ह्निके जन्म
कल्याणक
विधि ॥
।। १५४ ।।
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