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________________ ।। कल्याण कलिका. खं० २ ॥ वना ॥ का "सूरिश्चार्यदेशसमुत्पन्नः, क्षीणप्रायकर्ममलो, ब्रह्मचर्यादिगुणगणालंकृतः, पञ्चविधाचारयुते राजादीनामद्रोहकारी, श्रुताध्ययनसंपन्नः, I तत्त्वज्ञो, भूमि-गृहवास्तुलक्षणानां ज्ञाता, दीक्षाकर्मणि प्रविणो, निपुणः सूत्रपातादिविज्ञाने, स्रष्टा सर्वतोभद्रादिमण्डलानाम्, असमः प्रभावे, आलस्यवर्जितः, प्रियंवदो, दीनानाथवत्सलः, सरलस्वभावो वा सर्वगुणान्वितश्चेति ।३।" अर्थ- 'अने प्रतिष्ठाचार्य आर्यदेशमा जन्मेल, हलुकर्मा, ब्रह्मचर्यादि गुणगणे करी शोभित, पंचाचारपालक, राजादिकनो अद्रोही, आगमाभ्यासी, तत्त्वज्ञानी, भूमि तथा गृहवास्तुनां लक्षणो जाणनार, दीक्षाविधिमां हुंशियार, सूत्रपातनादिना ज्ञानमां पारंगत, सर्वतोभद्र आदि मंडलोनी रचना करनार, अतुलप्रभावी, अप्रमादी, प्रियभाषी, दीनदुःखीनी दयाकरनार, सरलस्वभावी अने सर्वगुणसंपन्न होवो जोइये.' शिल्पी ईन्द्र अंने आचार्य- वर्णन नि कलिकामां सर्वप्रतिष्ठाकल्पो करतां वधु आप्यु छे, जे उपरथी समझाय छे के पादलिप्तसूरिना | मनमां ए 'वस्तु' चोक्कसपणे बेठेली हती के 'प्रतिष्ठा' मां जो कोइ पण प्रभाव-उत्पन्न करनार होय तो उक्त शिल्पी आदिनी त्रिपुटी ज | छे, ए त्रिपुटी जेटले अंशे गुणाधिक हशे तेटले अंशे 'प्रतिष्ठित' बिम्बमां अधिक प्रभाव-कला उत्पन्न थशे. इन्द्रना विशेषणो उपरथी जणाय छे के तेवो 'इन्द्र' हजारोमांथी कोइ एक खोली कढातो हशे, आजनी जेम खर्च करनारने ते समये इन्द्रपद मलबुं दुर्लभ ज हशे. प्रतिष्ठाचार्यने अंगे पादलिप्ताचार्ये करेल वर्णन अने खास करीने "भूमि-गृहवास्तुलक्षणानां ज्ञाता, निपुण, सूत्रपातादिविज्ञाने, स्रष्टा सर्वतोभद्रादिमण्डलानाम्।" आ विशेषणो आपणुं विशेष ध्यान खेंचनारां छे. अने ते एम जणावे छे के प्रतिष्ठा करनार आचार्य ते सर्व साधारण 'आचार्य' नामधारी व्यक्ति नहिं पण उक्त विशेषणविशिष्ट होय ते ज 'प्रतिष्ठाचार्य' थवाने योग्य बने छ, पछी भलेने ते आचार्यपदस्थ | होय के उपाध्याय अथवा सामान्य साधु होय पण उक्त विशेषणविशिष्ट होय तो ते 'प्रतिष्ठाचार्य' ज छे, प्रतिष्ठाचार्यमां 'पद' करतां ON था dip श S CN था भ था ॥ २९ ॥ Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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