________________
शाल
॥ कल्याणकलिका. खं० २॥
जैवातृकार्कसुरसिद्धजलानि यावत्, स्थैर्य भजस्व वितनुष्व समीहितानि ॥४१॥ स्थापनीय वस्तुनी स्थापना करी उपरनुं पद्य भणी वासक्षेप करवो अने स्थापितने प्रणाम करवा.
इति विविधवस्त्वधिवासनाविधिः
|| श्री पादलिप्तसूरिप्रणीतः प्रतिष्ठाविधिः ॥
परिच्छेद १५ श्री पादलिप्तसूरिप्रणीतः प्रतिष्ठाविधिः । प्रतिष्ठाविधिरादिष्टो, निर्वाणकलिकाभिधे । ग्रन्थे सोऽत्रोद्धृतः पादलिप्तसूरिमतानुगः ॥१३॥ निर्वाणकलिका नामक ग्रन्थमा जे विधिनो आदेश करेलो छे ते पादलिप्तसूरि संमत बिम्ब प्रतिष्ठाविधि अहीं उध्धृत करेल छे, आ बिम्बप्रतिष्ठा निमित्ते प्रथम बे मण्डपो बनाववा, एक अधिवासना मंडप अने बीजो स्नानमंडप.
मण्पड निर्माण विधि - प्रतिष्ठा मण्डप बनावबानो कार्यारंभ प्रतिष्ठाकारकने चन्द्रबल पहोंचतुं होय तेवा शुभ मुहूर्त अने शुभ लग्नमां करवो जोइये.
मण्डप तथा वेदिकानी रचना अने परिमाण - ज्यां वीतरागदेवनी प्रतिष्ठा करवी होय त्यां एकसो हाथ जेटली भूमिने जयणापूर्वक शुद्ध करीने मंगल दृश्योथी आकर्षक बनावी तेमां उपर्युक्त बे मंडपो बनाववा अने तैयार थतां विधिपूर्वक तेमा प्रवेश करवो. प्रतिष्ठा मंडपनी रचना समचोरस तथा चतुर्मुख अने तेनी लम्बाई पहोलाइनुं माप प्रतिष्ठाप्य प्रतिमाना माप उपरथी निश्चित थाय छे. एनी उंचाइ पण प्रतिष्ठाप्य प्रतिमानी उंचाईनी साथे संबंध राखे छे. प्रतिष्ठाप्य प्रतिमानी उंचाई जो १-२ अथवा ३ हाथनी होय तो तेने योग्य |
Jain Education International
For Private & Personal use only
www.jainelibrary.org