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________________ ॥ कलश ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ प्रतिष्ठा ॥ समस्तवेयावच्च० संतिगराणं० करेमि का० १ नब० नमो० स्तुति - संघेऽत्र ये गुरुगुरुणौघनिघे सुवैयाकृत्यादिकृत्यकरणैकनिबद्धकक्षाः । ते शान्तये सह भवन्तु सुराः सुरीभिः, सदृष्टयो निखिलविघ्रविघातदक्षाः ॥८॥ १ नवकार प्रकट गणी 'नमुत्थणं! स्तवन० लघुशान्ति० जयवीराय । ए पछी श्रावके बंने हाथमां पुष्पांजलि लेइ "अभिनवसुगंधिविकसित-पुष्पौषभृता सुगंधधूपाढ्या । कलशोपरि निपतंती, सुखानि पुष्पांजलिः कुरुताम् ॥१॥" आ काव्य बोलीने पुष्पांजलि कलश उपर नांखवी. आ वखते प्रतिष्ठाचार्ये बे मध्यमा आंगलिओ उंची करी क्रूर दृष्टि करी तर्जनी मुद्रा देखाडवी, अने श्रावके ते पछी डाबा हाथमां जल लेइ कलश उपर आछोटवू. अने कलशने तिलक करवो. पुष्प चढावा. धूप | उखेववो, प्रतिष्ठा गुरुए कलशने मुद्रगरमुद्रा देखाडवी. अने 'ॐ ही क्ष्वी सर्वोपद्रवं रक्ष रक्ष स्वाहा ।' आ मंत्रनो न्यास करी कलशनी दृष्टि रक्षा करवी. श्रावके कलश उपर सप्त धान्यनो प्रक्षेप करी प्रथम धान्य स्नान करावयु, अने पछी कलशना-सुवर्ण १ जल २ सर्वौषधि | ३ मूलिका ४ गन्ध ५ वास ६ चन्दन ७ कुंकुम (केशरः८ कर्पूर ९ पुष्पजल, आ नव द्रव्योना जल वडे नव अभिषेक करवा. १- सुवर्ण स्नात्र - सुवर्णना ४ कलशो जले भरीने अथवा चनमा सुवर्णचूर्ण नाखीने "नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्व साधुभ्यः " कही - सुपवित्रतीर्थनीरेण संयुतं गन्ध-पुष्पसंमिश्रम् । पततु जलं कलशोपरि सहिरण्यं मंत्रपरिपूतम् ॥११॥ आ काव्य बोली कलश उपर अभिषेक करवो, तिलक करवू, पुष्प चढाववां. ॥ ३७७ ॥ Jan Education Internet For Private Personal use only w.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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