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॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥
| श्री पाद लिप्तसूरिप्रणीतः प्रतिष्ठाविधिः ।।
।। २९८ ॥
गोलनी ५ सेर सुखडी बालकोने बहेंची देवी,
उपर प्रमाणे विधि सहित मण्डप प्रतिष्ठा करी शुभ समय जोइ वेदी उपर नवीन प्रतिमाओ पूर्वाभिमुख अथवा उत्तराभिमुख स्थापन | करवी, अने पूर्वप्रतिष्ठित प्रतिमानी स्थापना सिंहासन उपर करवी. जो स्थिर प्रतिष्ठा होय अर्थात् प्रतिष्ठाप्य प्रतिमा सदाने माटे त्यां ज स्थापित रहेवानी होय तो तेनी नीचे पंचरत्ननी पोटली कुंभकारचक्रनी माटी सहित प्रथम स्थापीने पछी प्रतिमानी स्थापना करवी. पण प्रतिष्ठा जो 'चल' होय, एटले के प्रतिष्ठा थया पछी प्रतिष्ठाप्य प्रतिमा त्यांथी बीजे लेइ जवानी होय तो तेनी नीचे वाम भागनी तरफ समूलो डाम अने नदीनी पवित्र वालुका स्थापन करवी.
ते पछी प्रतिष्ठाचार्य नवां वस्त्र पहेरी स्नात्रकारो साथे मंगल निमित्ते नीचे प्रमाणे चैत्यवंदन कर, अने शान्ति निमिते देवताओना कायोत्सर्ग करवा.
मूलनायकनो नमस्कार - चैत्यवंदन कही, नमुत्थुणं, अरिहंत चेइआणं करेमि काउस्सग्गं वंदण वत्तिआ०, अन्नत्थ० १ नवकारनो काउसग्ग करी, नमोऽर्हत्• कही, मूलनायकनी स्तुति कहेवी. मूलनायकनी स्तुति याद न होय तो -
अर्हस्तनोतु स श्रेयः-श्रियं यद्ध्यानतो नरैः । अप्यैन्द्री सकलाऽत्रैहि, रंहसा सहसौच्यत ॥१॥ ए स्तुति बोलवी, पछी लोगस्स० सवलोए० अन्नत्थ० १ नवकारनो काउसग्ग द्वितीया स्तुति नीचेनी पण कही शकाय छे.
ओमिति मन्ता यच्छा-सनस्य नन्ता सदा यदंहिश्च । आश्रीयते श्रिया ते, भवतो भवतो जिनाः पान्तु ॥२॥
पछी पुक्खरवरदीवड्ढे० सुअस्स भगवओ करेमि का. अन्नत्थ० १ नवकारनो काउ० तृतीया स्तुति नीचेनी पण कही शकाय. 1 १. आ विधान पादलितोक्त नथी छतां वर्तमानकाले आधुनिक विधिओना लेखथी करातु होइ लख्यु छे.
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