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________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ।। प्रस्तावना ॥ ११ ॥ (३) क्रयाणको निर्वाणकलिकानी सामग्री-सूचीमा 'क्रयाणक' नो उल्लेख नथी, पण तेमा उल्लिखित 'अष्टोत्तरशत मातृपुटिका' जो क्रयाणक पुटिका होय तो नवाई नथी,अने जो एम ज होय ते ए कहे, जोइये के पादलिप्तसूरिना समय सुधीमा ३६० क्रयाणको नहिं पण १०८ क्रयाणको ज महत्वनां गणातां हशे अने तेनीज प्रतिष्ठामां उपयोगिता स्वीकाराई हशे, पछी धीमे धीमे १०८ नुं स्थान ३६० क्रयाणकोए ग्रहण कर्यु हशे अने १०८ ने बदले ३६० क्रयाणकोनी पुडिओ आगल धरावा मांडी हशे. श्रीचन्द्रसूरिजीना समय पर्यन्त प्रत्येक क्रयाणकनी जुदी जुदी पुडिओ बन्धाती हती. जिनप्रभना समयमां बधां क्रयाणकोनो एक पुडो बांधवानी प्रवृत्ति चालू थइ हती छतां जिनप्रभसूरि पोते ३६० पुडिओ बांधीने धरवी जोइये ए मतना हता, पण ते पछी बधां क्रयाणको भेगां बांधी एक पुडो करीने प्रतिमानी आगे मूकवानो सार्वत्रिक प्रचार थइ गयो हतो जे आज पर्यन्त तेज प्रमाणे कराय छे. (४) मुद्रा अर्थात् रूपैया पैसा पूर्वकालीन प्रतिष्ठाओमां अथवा ते स्नात्रोमां रूपैया पैसाने सामग्री रूपे उपयोग न हतो, इनाम के दानमा नाणांने अवकाश हतो, बाकी पूजापामां तो वास, गंध, पुष्प, धूप आदिने ज स्थान मल्युं हतुं, पण धीमे धीमे ए विधानोमा नाणांए पण प्रवेश कर्यो. प्रथम दोकडे (त्रांबाना अडधियाए) विधिमां पोतानुं स्थान जमाव्यु अने एनी पाछल रूपैयो पण अंदर घुस्यो, प्रथम एकेक पूजाना पाटला उपर एक एक रूपैयो चढवा लाग्यो. धीरे धीरे पद प्रति रूपानाणुं जोइये आवो आग्रह थवा मांड्यो अने रूपैयो नहि तो आठ आना, पावली के छेवटे रूपानी बे आनी तो जोइये ज एम कहीने विधिकारोए ते मूकाववा मांडी. आजे शांन्तिस्नात्र होय के अष्टोत्तरी वृद्धस्नात्र होय पण अभिषेक जेटला रुपैया आगल पाट उपर मुकायतो ज पूजा सारी भणावी कहेवाय, भले ते मूकायेल रूपैयानुं गमे ॥ ११ ॥ ॥ Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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