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॥ कल्याणकलिका.
॥ प्रस्तावना ।।
खं० २॥
॥ ४६ ॥
४- प्रतिष्ठा थया पछी तरत ज एटले तेज दिवसे कोइ कारणे गाममा अकस्मात् लडाइ झगडो के मारामारी जेवा क्लेशकारी दुनिमित्तो बनी जाय तो ते प्रतिष्ठा अवश्य अवनतिकारिणि बने छे, माटे प्रतिष्ठा करावनार संघे के व्यक्तिए आवा दुर्निमित्तो न बने एनी तकेदारी राखवी जोइये.
५. "श्रेयासि बहु विघ्नानि" ए कथनानुसार प्रतिष्ठा जेवा कल्याणकारी कामोमां विघ्ननाखनाराओ पण होय छे, मंडपमा फोसफरस नाखीने अथवा बीजी रीते मंडप आदिमां आग लगाडीने रंगमां भंग करनाराओ होय छे, माटे प्रतिष्ठाचार्यादि अधिकारी वर्ग आबी घटनाओ बनवा न पामे एवो बंदोबस्त अवश्य राखवो जोइये.
प्रतिष्ठाचार्य अने स्नात्रकारोनो मुख्य गुण___आजे घणाक स्नात्रकारोमा अने केटलाक प्रतिष्ठाचार्योमां पण प्रतिष्ठाने अंगे कंइक चमत्कार देखाडीने 'प्रतिष्ठा सारी थइ' एवी लोकोना मन उपर छाप पाडवानी वृत्तिओ होय छे, श्रीपूज्यो तखा यतिओनी अध्यक्षतामां थती प्रतिष्ठाओमा-शान्तिस्नात्रोमा बलि क्षेपना प्रसंगे आखं नालिएर आकाशमां उछालीने तेनुं खाली खोखं नीचे पडतुं देखाडी लोकोने आश्चर्य चकित करलाथी-लोको मानता 'जो नालिएरमांनो गोलो देताओए लेइ लीधो अने काचलांनुं खोखूनीचे नाखी दी' खरी बात तो ए हती के बलीक्षेप करनार यतियो अने भोजको खानगीमा चोटी सहित नालिएर फोडीने तेमांथी गोलो काढी लेता अने काचलां ठीक करी उपर गेवासूत्र वींटी नालिएर बलिबाकलाना उपर मूकता अने बलिक्षेप करतां नालिएर पण उछालता अने नीचे पडतां खोलूँ जोइ लोको चमत्कार मानता, पण वर्तमान समयमां आ प्रकार- पाखंड तो बंध पडी गयुं छे, आजकालना विधान करनारा स्नात्रकारो पैकीना केटलाको प्रतिष्ठा प्रसंगे अमृत झराववानो चमत्कार देखाडीने वाह वाह करावे छे पण तेवा विधिकारो अने तेवी प्रवृत्तिमा लाभ मानता प्रतिष्ठाचार्योए आवी प्रवृत्तिओ बंध करवी
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