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॥ कल्याणकलिका.
खं० २ ।।
।। ४५ ।।
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शुभाशुभ निमित्तो ध्यानमा राखवां अने जो उपराउपरी प्रतिष्ठा कार्यनी प्रवृत्तिमां अशुभ निमित्तो थतां होय तो ते अवसरे प्रतिष्ठा बंध राखी जोइये जेथी अशुभ परिणामनी जबाबदारी प्रतिष्ठा उपर आवे नहिं.
१- निमित्त जोवानो मुख्य प्रकार ए छे प्रतिष्ठानुं मुहूर्त जोवराव होय त्यारे स्थानिक ज्योतिषी श्रद्धापात्र होय तो तेने घरे जइने अने गाममां तेवो ज्योतिषी न होय तो बहारगाम कोइ जोषी अथवा श्रद्धापात्र आचार्य साधु वगेरे जाणकार होय तेनी पासे मुहूर्त जोवरावबा जर्बु. गामथी प्रयाण करती बेलाए शकुनो जोवां, जो अप्रार्थित शुभ शकुन थइ जाय तो समजवुं के प्रतिष्ठा धारेला समयमा थइ जशे.
२- पण आ शकुनो भविष्यनी उन्नति अवनतिने निश्चितपणे जणावी शकतां नथी, आने माटे मुहूर्त जोनारे तात्कालिक लग्न कुंडली काढीने जोवी, जो कुंडलीमा लग्न, धन, पुत्र, स्त्री, लाभस्थानो बगड्यां न होय अने आठमा स्थानमां कोइ पण वर्जित ग्रह न होय तो जोषीए मुहूर्त आपकुं, जो तात्कालिक पश्नमां लग्ननी व्यवस्था खराब होय तो कही देवूं के 'कोइ बीजा प्रसंगे पूछवा आवजो,' जो पुछनार ज्योतिषीनी सलाह मानीने ते टांणे प्रतिष्ठा बंध राखशे ते तेओ प्रतिष्ठाने दोषनुं निमित्त बनतां बचावशे अने अशुभ उदय मटी गया पछी शुभ निमित्त लब्ध लग्नमां प्रतिष्ठा करावीने अभ्युदयना भागी थशे.
३- प्रतिष्ठाचार्यनुं आत्मबल - जेम शुभाशुभ निमित्तो अभ्युदयानभ्युदयने सूचवे छे तेम प्रतिष्ठाचार्यनुं आत्मबल पण एमां सहकार आपे छे, जेना आचरण शुद्ध होय, जेनुं मन दृढ संकल्प होय अने जनो आत्मा शुभ परिणामी होय तेवा प्रतिष्ठाचार्यना हाथे थयेली प्रतिष्ठा प्रायः शुभ परिणाम लावे छे, एथी विपरीत जे प्रतिष्ठाचार्य आत्म विशुद्धिहीन होय, भग्नहृदयी होय, रोगादिकारणी बडे शारीरिक अने विशेषे करीने मानसिक शक्तिओ खोइ बेठेल होय तेवाना हाथे थयेल प्रतिष्ठा परिणामे अभ्युदयजनक निवडती नथी.
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॥ प्रस्ता
वना ॥
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