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। प्रस्ताबना ॥
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| खर्चे कोइ अष्टोत्तरी पूजा भणाववा इच्छे तो सत्तरमा सैकानी विधि प्रमाणे भणाची शकाय ए माटे बे जुदी जुदी आपी छे. ।। कल्याण
१५- पंदरमो परिच्छेद शान्तिस्नात्रे रोकेलो छे. शान्तिस्नात्रना कर्ता तपगच्छना उपाध्याय श्रीसकलचंद्रगणि छे. मारवाडमां शांतिस्नात्र कलिका. भणाववानी रीति वधारे छे. वली त्यां भणाववावाला थोडा एटले पुस्तकना आधारे हरेक भणावी शके एटला माटे आमां प्रत्येक अभिषेकमां
बोलाती गाथाओ वारंवार छापवाथी पुनरुक्ति थवाथी केटलुक मेटर वध्यु छे छतां मारवाडना विधिकारो माटे आ पुनरुक्ति उपयोगी थशे
एम अमाझं मानवु छे. अष्टोत्तरीनी विधिओ जेम उपलब्ध थई तेम शांतिस्नात्रनी प्राचीन लिखित विधि मेलववामां सफलता न मली. me सो वर्ष पूर्व लखायेली एक पण शान्तिस्नात्र विधि न मलवाथी जे हती ते प्रतिओ उपरथी ज ए विधि तैयार करवी पडी छे.
१६- सोलमा परिच्छेदमा तीर्थयात्रा शांतिक छे, संघसमुदायनी साथे संघपति बनीने तीर्थयात्राए निकलता संघपतिना घरे प्रथम ए शांतिक करी पछी प्रयाण कर, जोइये एवी मर्यादा छे, आ शान्तिक अमोए प्राचीन पानाओ उपरथी तैयार करेल छे.
१७- सत्तरमा परिच्छेदमां बे ग्रह शांतिको छे, पहेलु सामान्य ग्रहशान्तिक छे ज्यारे बीजं शांतिक गोचरग्रहपीडानी शान्तिकरवा as माटेर्नु छ, आ बंने शांतिको अमोए प्राचीन हस्तलिखित प्रतो उपरथी लीधेल छे.
१८- अढारमा परिच्छेदमा जीर्णोद्धार विधि छे, जीर्णोद्धारनो अर्थ अहिंयां भग्नजिन प्रासाद के खंडित जिनप्रतिमा आदिनुं विसर्जन करवानो छे. आ विधि अमे निर्वाणकलिका तथा शिल्पशास्त्रना आधारे तैयार करेल छे.
१९- ओगणीशमा परिच्छेदमां देवी प्रतिष्ठाविधि अमे एक हस्तलिखित प्रति उपरथी तैयार करेल छे, ते प्रतिमां पण एनुं नाम 'देवी प्रतिष्ठा विधि' ज हतुं पण तपास करतां जणायु के ए विधिनो आधार ग्रन्थ 'आचारदिनकर' छे. आ विधि यक्षिणी आदि परिकर oral रूपे गणाता देवदेवीओनी प्रतिष्ठामा करवानी नथी पण तेमा जणावेल देवीओ पैकीनी कोइ देवीनी स्वतंत्र रूपे कोइ जुदा ते निमित्ते
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