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।। कल्याणकलिका, खं०२॥
॥ प्रस्तावना ॥
बनेला दहेरामा प्रतिष्ठा करवी होय तो त्यां करवानी छे.
२० - वीसमा परिच्छेदमा विविध उपकरणोने अधिवासित करवानी विधि छे, आ परिच्छेद आचारदिनकरानुसारी छे. २१- एकवीशमो परिच्छेद प्रकीर्णक प्रतिष्ठाविधिओनो छे अने ए विधिओ पण अधिकांश आचारदिनकरना आधारे ज लखायेली छे.
उपर्युक्त विधिखंडना संकलन माटे अमारी पासेना प्रतिष्ठाकल्पो उपरांत प्राचीन प्रतिष्ठाकल्पो मेलववा माटे प्रयत्न करेल, खास करीने उ० सकलचंद्रजीए पोताना प्रतिष्ठाकल्पनी समाप्तिमां निर्दिष्ट नामना श्यामाचार्य हरिभद्रसूरि-हेमचंद्राचार्य जगच्चन्द्रसूरिना नामे चढेला प्रतिष्ठाकल्पो पैकीनो कोई अस्तित्वमा होय ते तपास करवा जेसलमेर पाटण आदिना भंडार व्यवस्थापकोने पूछाव्यं पण बघेथी एकज प्रकारनो उत्तर मल्यो के अत्रेना भंडारमा आपे जणावेल कोइ प्रतिष्ठाकल्प नथी. अमने लाग्युं के उ०सकलचंद्रजीए जादूना बले आ कल्पोनु सर्जन करीने श्रीविजयदानसूरिने देखाड्या होय तो वात जुदी छे अन्यथा आटला अल्पसमयमां बधा उक्त कल्पो नाम शेष थइ जाय ए संभवित नथी, ज्यारे बहारथी विशेष उपयोगी सामग्री न मली त्यारे उपलब्ध सामग्रीना आधारे ज कार्य चालुं कर्यु जेना अवलोकन अने मनन पछी प्रकृत खंडनी संकलना थइ ते सामग्री नीचे प्रमाणे हती
१. निर्वाणकलिका-मुद्रित छतां ताडपत्रना पुस्तकने आधारे सुधारेली । २. श्रीचन्द्रसूरि प्रतिष्ठापद्धति कंइक अशुद्ध, मुद्रित । ३. 'विधिधर्मप्रपा' सामाचारीगत जिनप्रभीय प्रतिष्ठापद्धति सं० १७८३ मां लखेल प्रति उपरथी सं० १९४२ मां लखायेली शुद्धप्राय । ४. श्री वर्धमानसूरिकृत प्रतिष्ठापद्धति मुद्रित अशुद्धिबहुल ५- गुणरत्नसूरिकृत प्रतिष्ठाकल्प पुस्तक २, (१) १८ पत्रात्मक “इति प्रतिष्ठादि समग्रविधिः । सं० १५४२ वर्षे आसो वदि पंचमीदिने
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