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________________ । प्रस्तावना ॥ IM पाडेल “बिम्बप्रवेश- विधि' नामक पुस्तकमां पण ए ज विस्तृत पूजन विधि छपायेल अने आजे घणा विधिकारो ए ज प्रमाणे पूजन | ।। कल्याण करोवे छ', पहेला जेओ प्रतिष्ठा कल्पने अनुसारे उक्त पूजन करावता हता तेओ पण हवे आ विस्तृत संदर्भने अनुसरीने पूजन करावे कलिका. छे पण ए विधान ते वखते समजदारनी दृष्टिमां केटलुं बधुं अनुचित अने खटकनारूं लागे छे ? जे वस्तुनुं रुपियामां एक आनीभर पण खं०२॥ महत्त्व न हतुं तेने आने वधारीने रुपियाभर बनावी देवामां आव्युं छे, अने खूबी ए छे के ए बधुं करवामां विधिकारो पोतानी विद्वत्ता माने छे, ते वखते तेमने एटलो पण विचार आवतो नथी के तेओ ए काम प्रतिष्ठा अथवा महापूजाना एक साधारण अंग रूपे करी रह्या छे, नहिं के मूल वस्तुने पण टपी जाय ए, कोइ स्वतंत्र अनुष्ठान के जेनी पाछल ३।४ कलाक जेटलो समय लगाववो योग्य गणी शकाय, प्रतिष्ठान मूल अंग नन्द्यावर्तन आलेखन-पूजन छे, ए कार्य प्रतिष्ठाचार्यनुं छे, पण आजे प्रतिष्ठाचार्य ते ते जाणे एनी साथे कंड सबन्ध ज नथी, अने विधिकारोने पण ग्रह दिक्पालोना पूजन माटे चच्चार कलाक बेसी रहेबानो समय मली जाय, पण नन्द्यावर्तना आलेखन-पूजन माटे समय के शक्ति नथी एटले चिताराना हाथे पक्का रंग-रोगान बडे चितरायेल नन्द्यावर्तना वस्त्रपटने पाटला उपर मूकीने तेना पूजनद्वारा श्रीपर्णीना पाटला उपर नन्द्यावर्तन पूजन कर्यु मानी ले छे ! केवी विचित्रता ? १-जेमणे आ विस्तृत पूजन लख्युं छे तेमनो आशय ए न हतो के स्नात्र के प्रतिष्ठामा ग्रह पूजन आ प्रमाणे ज थाय, लेखके जे प्रथम संक्षिप्त पूजन लख्यु छे ते ज प्रतिष्ठा-पूजा प्रसंगे करवानुं छे, आ विस्तृत पूजन शा माटे लख्यु छे एर्नु कारण लेखके स्पष्ट कही दीधुं छे, 'इति ग्रह-दिक्पाल संक्षेप पूजन विधि" तथा "हवइ प्रतिकूल ग्रहनइ प्रसन्न करवा प्रसंगे विस्तारे पूजन लिखिई छई" जे व्यक्तिए आ विस्तारे पूजन लख्युं छे ते पोते स्पष्ट जणावे छे को आ पूजन प्रतिकूल ग्रहने प्रसन्न करवा माटे छे नहिं के प्रतिष्ठादि विधानोमां करवा माटे, परन्तु आधुनिक विधिकारोए 'हबइ' इत्यादि कारण ज्ञापक पाठ ज पुस्तकमाथी काढी नाख्यो छे अने आ विस्तृत कारणिक पूजनने सामान्य बनावी दीधुं छे. दिपालो प्रतिकूल ज नथी होता छतां तेमनुं पण एज प्रकारे पूजन कराय छे. ए केवु अज्ञान छ ? For Private & Personal use only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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