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________________ ॥ कल्याणकलिका. खं.२॥ ।। १६० ॥ जायन्ते जन्तवो यच्चरणसरसिजद्वन्द्वपूजान्विताः श्री-अर्हन्तं स्नात्रकाले कलशभृतजलैरेभिराप्लावयेत्तम् ॥२॥" “ॐ ह्रां ह्रीं हूँ हैं ह्रौं ह्रः अर्हते तीर्थोदकेन अष्टोत्तरशतौषधिसहितेन षष्ठिलौककोटिप्रमाणकलशैः स्नापयामीति स्वाहा। ॥ सप्तमाआ काव्यो अने मंत्र भणवो, ते पछी - कहिके जन्म"तत्र पूर्वमच्युतेन्द्रो, विदधात्यभिषेचनम् । ततोऽनुपरिपाटीतो, यावच्चन्द्रार्यमादयः ॥१॥" कल्याणक विधि ।। आ श्लोकोक्त नियमानुसार सर्व प्रथम अच्युतेन्द्रे अभिषेक करवो, ते पछी आनत प्राणतेन्द्रादि उतरता क्रमथी यावत् चन्द्र सूर्य | सर्व इन्द्रो अभिषेक करे, प्रत्येक अभिषेक करतां नीचे लखेल मंत्र बोलवो - "ॐ हाँ हाँ क्षीरोदकादितीर्थजलेन स्नापयामीति स्वाहा ।" क्रमानुसार शक्रेन्द्रनो वारो आवतां शक्रेन्द्रे - "चतुर्वृषभरूपाणि, शक्रः कृत्वा ततः स्वयम् । शृङ्गाष्टकक्षरत्क्षीरे-रकरोदभिषेचनम् ॥१॥" आ श्लोकोक्त नियमानुसार चार वृषभरूप करीने शृंगोथी अभिषेक करवो. देवकृत स्नानाभिषेको थई गया पछी इन्द्ररूपे कल्पायेला प्रतिष्ठा करावनार गृहस्थे जिन आगे रूपाना अक्षतो (तेना अभावे अखंडउज्वल स्वाभाविकधान्य) वडे अष्ट मंगलो पूरवां अने - "सन्मङ्गलप्रदीपं ते, विधायाऽऽरात्रिकं पुनः । संगीतनृत्यवाद्यादि, व्यधुर्विविधमुत्सवम् ॥१॥" आ श्लोक भणवो अने मंगलदीवो तथा आरती उतारवी, वाजिंत्रादि बगाडवां, अंते आठ स्तुतिओथी देववंदन करवू, आ प्रमाणे ॥ १६० ॥ देवकृत जन्मोत्सव करवो. CH छ था Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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