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________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ॥ ।। ४२४ ।। Jain Education International शुभ्रैर्दध्नः पिण्डखण्डैः समृद्धं कुर्याद्बह्वारम्भमारम्भवृत्तः ||२|| शक्तित्रितयाध्यासित-रूपत्रयवत्त्रिविष्टपाग्रस्य । क्षतकलिवलिपुञ्जत्रय-मुचितं भुवनत्रयाधिपतेः ||३|| आ काव्यों बोलीने प्रतिमाने आगे सर्व धान्यो, पकान्नो, फल फुलो, शाको, दधिखंडो विगेरे यथाप्राप्त बलि ढोवी, बलिना त्रण पुंज करवा. धान्यो पक्कान्नो एक पुंजमा, शाको दधिखंडो एक पुंजमां, अने फलो पुष्पो एक पुंजमा ढोवां. ए पछी मंगलदीवो तैयार करी भुवनत्रयैकदीपस्य, चारु कुर्वीत वीतविक्षेपः । मङ्गलगीतसनाथं, निर्वर्धनकं प्रदीपेन || ४ || आ काव्य बोली वाजिंत्रो अने मंगलगीतो पूर्वक मंगलदीवो उतारवो. मल्लास्फोटनवल्ग-न्नन्दीजयघोषधूर्णितदिगन्तम् । आरात्रिकावतरण - कमस्तु वः श्रेयसे जैनम् ||५|| आ काव्य बोली पूर्ववत् वाजिंत्रोना घोप साधे आरती उतारवी. भृङ्गारनालनिर्झर-झात्कारैराती हृतात्तापम् । आरात्रिकानुमार्ग प्रवर्तिनी वारिधारा वः ||६|| आ काव्य बोली नालवाला कलशवडे आरतीनी जेम दक्षिणावर्त फरती त्रणवार जलधारा देवी, अने तैयार राखेल अग्निपात्रमां जराक जल रेडवुं. इदं जिनजगत्त्रयातिशयरूपसंपद्भवत् प्रभूततरविस्मयाकुलितमानसैर्दर्शितम् । पुरन्दरपुरस्सरैः सुरपुराधिराजैः पुरा, जिनेन्द्रलवणाकुवतारणकमस्तु वः श्रेयसे ||७|| आ काव्य बोलीने प्रतिमाने लवण उतारर्खु, अने लवण अग्निमां नाखबुं दिक्पालोने बलिप्रक्षेप For Private & Personal Use Only 11 श्रीशान्ति वादिवे तालीय अर्हद भिषेक विधिः ॥ ।। ४२४ ।। www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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