SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ प्रस्ताबना ॥ ना पडाती नथी. पूर्वकालमां तो लोहनी पंचरत्नमां गणना थती हती अने कृष्ण लोहनी मुद्रिकानो प्रतिष्ठामां उपयोग थतो हतो. ३०-प्र० केटलाक विधिकारो विधिमा न होय तो य अमुक मांत्रिक शब्दो वधारीने बोले छे ए योग्य छे ? उ० विधिगत मंत्रोमा जे जे शब्दो परापूर्वथी बोलाता होय ते ज बोलवा जोइये पोताना तरफथी कंइ पण नवु उमेर जोइये | नहिं, जो आम दरेक विधिकार थोडं थोडं वधारतो जाय तो विधिमां अव्यवस्था वधी जाय माटे कोइये पण पोतानी कल्पनाथी विधिमां न्यूनाधिक्य करवू नहि. ९-आजना विधिकारो अने तेमनां विधि-विधानोउपर आपणे जोयु के प्रतिष्ठाना विधिकार्यमा घणापूर्वकालमां शिल्पी, स्नात्रकारगृहस्थ अने प्रतिष्ठाचार्य आ त्रण मुख्य अधिकारिओ हता, पण पाछळथी आ पद्धतिमा घणुं ज परिवर्तन थइ गयुं छे. आजे 'शिल्पी' एक पगारदार नोकरथी अधिक गणातो नथी, प्रतिष्ठाचार्य पण आ कार्यमा जे सर्वेसर्वा गणातो ते आजे केवल नेत्राञ्जन अने वासक्षेप करवानो अधिकारी रही गयो छे, तेमनी आ स्थिति थवानुं कारण प्रतिष्ठाविधिविषयक अज्ञान छे, अज्ञानप्रतिष्ठाचार्यनी प्रमुखवाली प्रतिष्ठामा विधि जाणनारा स्नात्रकारो ज प्रतिष्ठाना प्रमुख अने सत्ताधारी कार्यकरो बनीने अजाण प्रतिष्ठाचार्य उपर पोतानुं वर्चस्व जमावे ए स्वाभाविक छे, आजे घणी खरी प्रतिष्ठाओमां आम ज बने छे, ज्यां प्रतिष्ठाचार्य कंइ पण जाणकार के जागृत होय त्यां तो थोडीघणी तेमनी पूछपरछ पण थाय, नहिं तो विधिकारो बधां कामो कर्ये जाय ने खास प्रसंगोमां 'साहेब! अमुक करो, साहेब! तमुक करो' आम प्रतिष्ठाचार्य साहेब उपर पोताना जाणपणानी छाप पाड्ये जाय छे. प्रतिष्ठाकल्पोना सर्वसंमत विधान प्रमाणे नीचे जणावेल कार्यो प्रतिष्ठाचार्ये पोते ज अग्रेसर बनीने करवां जोइए"थुईदाणमंतनासो, आहवणं तह जिणाण दिसिबंधो । नेत्तुम्मीलण-देसण, गुरुअहिगारा इहं कप्पे ॥" For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy