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॥ कल्याण 'कलिका. खं० २ ॥
रूपवाली होय छे. संप्रदायदेवीओ - अंबा, सरस्वती, त्रिपुरा अने तारा प्रमुख गुरुए उपदेशेल मंत्रोपासनावाली होय छे.
॥ देवी कुलदेवीओ - चंडी, चामुण्डा, कंठेश्वरी, सत्यका, सुशयना, अने व्याघ्रराजी वगेरे जाणवी.
प्रतिष्ठा ॥ ए बधी देवीओनी प्रतिष्ठा सरखीज होय छे. देवी प्रतिष्ठा प्रसंगे प्रतिष्ठा करावनारना घरे प्रथम ग्रह शान्तिक अने पौष्टिक कर्म करवू, त्यारबाद प्रासाद अथवा घरमा बृहत् स्नात्रविधि बडे स्नात्र करवू.
देवीना प्रासादे ग्रपतिमाने लइ जइने त्यां ग्रहशान्तिक स्नात्र करवू.
त्यार पछी पूर्वे कहेल रीति वडे भूमि शुद्ध करीने, तेमां पंचरत्न मूकीने, तेना उपर कदम्बना काष्ठनो पाटलो मूकी तेना उपर देवीनी प्रतिमा स्थापन करवी, स्थिर प्रासाददेवीप्रतिमाने कुलपीठ उपर पंचरत्न न्यासपूर्वक स्थापन करे.
त्यार बाद दरेक कुडव प्रमाण मेलवेला सर्वप्रकारना धान्य बडे देवीनी प्रतिमाने नीचेनो मन्त्र बोली वधाववी. मंत्र - "ॐ श्री सर्वान्नपूर्णे सर्वान्ने स्वाहा ।"
त्यार बाद पूर्वे कहेला लक्षणवाला चार स्नात्र करनारा तैयार करवा, आचार्य पोते तथा स्नात्र करनारा वींटी, कंकण, अने दशा सहित वस्त्र धारण करी पोताना अने ते स्नात्र करनाराना अंगनी रक्षानो न्यास त्रण वार आ प्रमाणे करे -
ॐ ह्रीँ नमो ब्रह्माणि-हृदये । ॐ ह्रीँ नमो वैष्णवि-भुजयोः । ॐ ह्रीँ नमः सरस्वति-कण्ठे । ॐ हीं नमः परमभूषणेमुखे । ॐ ह्रीँ नमः सुगन्धे-नासिकयोः । ॐ ह्रीँ नमः श्रवणे-कर्णयोः । ॐ ह्रीं नमः सुदर्शने-नेत्रयोः । ॐ ह्रीँ नमो || भ्रामरि-भूवोः। ॐ ह्रीँ नमो महालक्ष्मि-भाले। ॐ ह्रीँ नमः प्रियकारिणि-शिरसि । ॐ ह्रीं नमो भुवनस्वामिनि-शिखायाम्।
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