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________________ ॥ कल्याणकलिका. ॥ २० ॥ परमेष्ठि मुद्राए ३ वार कही जिनाह्वान करवू, पछी - ॐ ह्रां ह्रीँ ऋषभादिवर्द्धमानान्तास्तीर्थंकरपरमदेवाः तेषां प्रतिहारदेवाः शासनदेवा देव्यश्च प्रत्येक एकादश देवाः छत्रधराः, | | दशमाचामरधरा, कुण्डलधारको, सिंहासनोभयपार्श्वयोर्दीपधूपधारको, शासनयक्षौ, इमे सर्वे देवा अत्रागच्छतागच्छत, अवतरन्तु, हिके अञ्ज निशलाकाअवतरन्तु ॐ आँ क्रीँ ह्रौं नमः स्वाहा । आ मंत्रे आव्हान करवू. प्रतिष्ठाॐ हाँ हाँ ऋषभादिवर्द्धमानान्तास्तीर्थंकरपरदेवास्तेषां प्रतिहारदेवाः, शासनदेवा देव्यश्च ॐ ही अत्र तिष्ठन्तु तिष्ठन्तु विधि ॥ ठः ठः स्वाहा । आ मंत्र वडे तेओनुं स्थापन करवू. ___ॐ ह्रां ह्रीँ ऋषभादिवर्द्धमानान्तास्तीर्थंकरपरमदेवास्तेषां प्रतिहारदेवाः, शासनदेवा देव्यश्च अत्र सन्निहिता भवन्तु भवन्तु वषट् । आ मंत्रे तेमनु संनिधान करवू. पछी रुपाना कचोलामा रातो सुरमो, बरास, कस्तुरी, साकर, घृत, मिश्रित करीने___ॐ हँ हाँ ही हूँ हौँ हः हाँ ह्रीँ हूँ हूँ हौँ हूः बिम्बप्रदेशे सिद्धाञ्जनाय नमः । ॐ ह्रीं अर्हन् ज्ञानाधिपते ज्योतिः प्रकटय प्रकटय स्वाहा । ए मंत्रे मंत्रवो । ए पछी शुभ लग्न नवांशकमां सुवर्णशलाकामां अंजन लइने - ॐ ह्रां ह्रीं हूँ हैं ह्रीं ह्रः अर्हन् अञ्जने अवतर अवतर क्यूँ हूँ केवलज्ञानज्योतिः प्रकटय प्रकटय स्वाहा । ए मंत्र करी नेत्रमा अंजन कर. ॐ हाँ ही परमार्हन केवलज्ञान-केवलदर्शनसिद्धाञ्जने स्थिरीभव हुं फट् ।' आ मंत्रे स्थिरीकरण करवू. अने M का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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