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॥ कल्याणकलिका. खं०२॥
|| अष्टोत्तरी शतस्नात्र विधिः ॥
॥ ४३७ ।।
केतुने यक्षकर्दमनो आलेख अने तेनीज पूजा, सिंदुरिया स्फटिकनी मालाए मंत्र गणबो, मगनी दालनो लाडवो मूकबो. केतुनो मंत्र - ॐ काँ की मैं टः टः टः छत्ररूपाय राहुतनवे केतवे नमः स्वाहा ॥९॥
प्रार्थना . ___ राहोः सप्तमराशिस्थः, कारणे दृश्यतेऽम्बरे । श्रीमल्लिपार्श्वयोर्नाम्ना, केतो शान्ति श्रियं कुरु ॥१०॥
इति केतुपूजा। जे ग्रह पीडाकारक होय तेनी पूजा तेमज तत्प्रतिबद्ध जिननी पूजा करवी, अने प्रार्थनानो श्लोक बोलीने तेमना वर्णानुसारी वर्णनी पुष्पांजलि चढाववी, एक साथे घणा ग्रहो पीडाकारक होय अथवा सर्व ग्रहो एक काले पीडाकारक होय तो आ लखेल विधिथी ग्रहपूजन कर.
मुख्य श्रावके शेवननो १ पाटलो धूपवास पुष्पे वासित करी, ते उपर अघाडानी अथवा शरीडानी लेखणे चन्दन केसरे ९ ग्रह आलेखवा, ग्रह उपर त्रांबानाणुं प्रत्येके मूकबुं, उपर राते वस्त्रे ढांकिये. ते उपर अणियाला पान, चोखा ढगली, राती सोपारी, नाणुं प्रत्येके एक एक मूकीये, पछी पंचवर्णा फूल नालियेर पसलीमा लेइने -
जिनेन्द्रभक्त्या जिनभक्तिभाजां, जुषन्तु पूजाबलिपुष्पधूपान् ।
ग्रहा गता ये प्रतिकूलभावं, ते सानुकूला वरदा भवन्तु । आ पद्य भणी उपर मूकीये,
इति नवग्रह पूजा विधि ।
॥ ४३७ ॥
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