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॥ कल्याण-1 कलिका. खं० २॥
आम प्रतिष्ठाविधिकार्य माटे प्रथम ३, मध्यकालमा ५ अने छेल्ले सत्तरमा सैकाथी ६ कार्याधिकारियो नियुक्त थता नजरे पड़े छे. IN (४) स्नात्रकारो(४)
।। प्रस्ताम निर्वाण-कलिकाना निर्माण समयमा स्नात्रकारोनुं बहु महत्त्व न हतुं, ते वखते प्रतिष्ठाचार्य घणां खरां कार्यो पोते जाते करी लेता | वना॥ अने गृहस्थोचित विधानो इन्द्र पासे करावी लेता, ज्यां एकथी अधिक गृहस्थोनी आवश्यकता पडती त्यारे ज स्नात्रकारो याद कराता हता, ए ज कारण छे के श्री पादलिप्तसूरिजीए ‘इन्द्र'नुं आटलं विस्तृतवर्णन आप्युं छे, छतां स्नात्रकारोने अंगे कंइ ज लख्युं नथी.
श्री चन्द्रसूरिजीए पोतानी प्रतिष्ठापद्धतिमा स्नात्रकारोनां लक्षणो नीचे प्रमाणे बतान्यां छ
'स्नपनकाराश्च समुद्राः सकंकणा अक्षतांगा दक्षा अक्षतेन्द्रियाः कृतकवचरक्षा अखण्डितोज्ज्वलवेषा उपोषिता धर्मबहुमानिनः कुलजाश्चत्वारः करणीयाः।"
अर्थ- 'स्नपनकारो मुद्रिका कंकण सहित, अक्षतशरीर, प्रवीण, अखण्डेन्द्रिय, मंत्रकवचथीरक्षित, अखण्ड अने उज्ज्वल वेषधारी, | उपवासी, धर्मनुं बहुमान करनारा, कुलवान एवा ४ करवा.'
आचार्य जिनप्रभसूरिए पण पोतानी प्रतिष्ठा विधिमां स्नात्रकारोनी योग्यताना विषयमा अक्षरशः उपरनुं ज वर्णन आप्यु छे एटले | अहीं पनुरूक्ति करनानी आवश्यकता नथी.
श्रीवर्धमानसूरिए पोताना कल्पमा स्नात्रकारोनी योग्यताविषयक वर्णन नीचेना शब्दोमा आप्यु छ
“चतुर्णां स्नपनकाराणामुभयकुलविशुद्धानामखण्डितांगनां, नीरोगाणां, सौम्यानां, दक्षाणामधीतस्नपन विधीनां, कृतापवासानां प्रगुणीकरणम् ।"
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