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।। कल्याण कलिका. खं० २॥
॥ दशमाह्निके अञ्जनशलाकाप्रतिष्ठाविधि ॥
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इत्थं सिद्धं प्रसिद्ध सूरनरमहितं द्रव्य-भावाद्विकर्म- पर्यायिध्वंसलब्धाऽक्षयपुरवलसद्राज्यमानन्दरुपम् । ध्यायेद्विध्यातकर्मांशकलमविकलं सौख्यमाप्पैहिकं सत्, ब्रह्मोपेतं प्रमोदादसमसुखमयं शाश्वतं हेलयैव ॥२॥ ॐ हाँ ही परमअर्हते अष्टकर्मरहिताय सिद्धिपदं प्राप्ताय पारंगताय स्नापयामीति स्वाहा । आ कान्यो तथा मंत्र बोली प्रतिमानो अभिषेक करवो अने - 'ॐ ह्रीं अहँ सिद्धाय नमः । ' आ मंत्र भणी प्रतिमानी पूजा करवी. पछी श्रावकोए हाथमा ५.५ पुष्पो अंजलिमां लईने - च्यवन-जन्म-चारित्र-ज्ञान-निर्वाणनामके । कल्याणपञ्चके लोका- नन्दकृन्नन्दताज्जिनः ॥१॥ आ श्लोक भणी पुष्पो प्रतिमा उपर क्षेपवां. पछी स्नात्रकोए बंने हाथनी अंजलिमा गन्ध लइनेॐ ह्म्ये गन्धान् नः प्रतिच्छन्तु स्वाहा । आ मंत्र भणी गन्धथी पूजा करवी, तथा पुष्पो हाथमां लई - ॐ म्ये पुष्पाणि गृह्णन्तु स्वाहा । आ मंत्र बोली प्रतिमा उपर पुष्पो चढाववां, धूपधाणुं हाथमां लई धूप पूडी उपर नाखीॐ हम्ये धूपं भजन्तु स्वाहा । आ मंत्र बोली धूप उखवबो, कुसुमांजलि हाथमा लईनेॐ ह्म्ये सकलसत्त्वलोकमवलोकय भगवान्नवलोकय स्वाहा । आ मंत्र बोली बिम्ब सामे त्रण वार कुसुमांजलि नाखवी.
पछी स्नात्रकारोए पहेला करेली सघळी पूजा दूर करी चंदन, केसर, पुष्प, वस्त्र, आभरणादि वडे नवी पूजा करवी, पहेलानुं सघलुं बलि नैवेद्य दूर करवू, अने बीजोरादिक फला, ५ जातिना ५-५ लाडवा, मेवो, मुखवास, आदि सर्व नवु चढावई, पछी लूण-पाणीनी विधिपूर्वक आरति अने मंगलदिवो करवो.
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