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________________ ।। कल्याण कलिका. ॥ स्मरणस्तोत्राणि ॥ खं० २॥ ॥ ५२३ ॥ ढाल-श्रीजिनचंदने सुरपति नवरावताए निज निज जन्म सुकृतारथ भावताए त्रुटक-हारे भावता जनम प्रमाण । अभिषेक कलश मंडाण । साठि लाख ने एक कोडि, सय दोय पंचास जोडि । आठ वाना जेह होई,चोसट्ठ सहसा जोइ । इणि परे भक्ति उदार, करे पूजा विविध प्रकार ॥१०॥ ढाल-विविध प्रकारना करिय सिणगार श्युंए भरीय जल विमलना विपुल शृंगार रूड्डाए । त्रुटक-हारे भंगार थाल चंगेरी, सुप्रतिष्ठ प्रमुखसुं भेरी । सवीकलश परिमंडाण, ते विविधवस्तु परीमाण ॥११॥ आरति मंगलदीप, जिनराजने समीप । भगवती चूरणिमांहे, अधिकार एह उछाहे ॥१२॥ ढाल-अधिकार उछाहसुं हरष भरजल भीजताए, नवनव भांतिसुं भक्तिभर कीजताए । त्रुटक-कीजता नाटिक रंग गाजतां गुहिर मृदंग, किट किटति तिहां कडताल चउताल ताल कंसाल ॥१३।। संख पणव भुंगल भेरी झलरी वीणा नफेरी एक करे हयपार, एक करे गजगुलकार ॥१४॥ ढाल-गुलकार गरज नीरव करेए पाय दुर २ धूर सुर धरेए । त्रुटक-सुर धरे अतिबहुमान । तिहां करे नव नव तान, वर विविध जाते छंद जन भक्त सुरतरुकंद ॥१५॥ बलि करे मंगल आठ, ए जम्बूपन्नति पाठ । थय थूइय मंगल एइ, मन धरी अति बहु प्रेम ॥१६।। ढाल-प्रेमसुं घोषणा पुन्यनी नीसुणे सुर सहूए समकित पोषणा सिष्ट संताषणा इंम बहुए । त्रूटक-बहू प्रेमस्युं सुख खेम धरि आणिया निधी जिम, बत्रीस कोडि सुवन करे वृष्टि रयणनिधान ॥१७॥ ॥ ५२३ ॥ Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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