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________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ३२३ ।। Jain Education International सर्वरत्नोना अभावे हीरो, सर्वलोहना अभावे सुवर्ण, सर्व धातुओना अभावे हरताल, सर्व औषधीना अभावमां सहदेवी, (विष्णुक्रांता) अने सर्वबीजोना अभावमां जवनो उपयोग करवो. अथवा सर्वना अभावमा एकलो पारो सर्व खाडाओमां मूकवो, मध्यगर्त उपर पांडुकंबलशिला तथा सिंहासन सहित सोनानो, त्रांवानो अथवा माटीनो मेरुपर्वत स्थापित करवो. उपर्युक्त विधि स्थिर प्रतिष्ठानी छे, जो प्रतिष्ठा चर हाय एटले के प्रतिष्ठाप्य प्रतिमा आसन उपर चर राखवानी होय तो उक्त विधिना स्थाने आसने रत्नगर्भित कुंभकारना चक्रनी माटी अने दर्भ, आ वे चीजोनो ज विन्यास करवो. पीठ उपर पूर्वोक्तप्रकारे रत्नादिकनो विन्यास कर्या पछी भगवन्तने अभिमंत्रितवस्त्रनो पडदो करीने अधिवासनामंडपमांथी लइ, लोकपालोने बलिक्षेप करी, 'जय' शब्दादि मंगलोच्चार पूर्वक वाजिंत्रोना नाद साथे रत्न- रूपैया पैसा उछालतां भद्रपीठ (गभारामां पबासन ) उपर पधराबवा, त्यां उतारती वखते 'स्थिरो भव' ए शब्दो कहेवा, सूत्रधारे भद्रपीठ उपरना खाडाओने पाटीआओथी ढांकी प्रतिमाने बेसाडाने स्थिर करवाने योग्य सर्व तैयारी करीने लग्ननी प्रतीक्षा करवी, लग्नसमय निकट आवतां सूत्रधारे प्रतिमा उपरनो पडदो दूर करवो अने आचार्ये मध्यमा आंगलीमां चंदन, अंगूठा तर्जनीमां वासचूर्ण अने मुट्टिमां पुष्पाक्षत लेइ श्वासनुं कुंभक करी प्रतिमाने मूलस्थाने प्रतिष्ठित करवी. 'ॐ अर्ह' आ मंत्रवडे १ मस्तक, २-३ जमणो-डावो स्कंध, अने ४-५ जमणो-डावो जानु, आ पांच अंगो उपर वासादि निक्षेप कर, चंदननुं तिलक कर अने “ॐ नमो अरिहंताणं । ॐ नमो सिद्धाणं । ॐ नमो आयरियाणं । ॐ नमो उवज्झायाणं । ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं । ॐ ओहिजिणाणं । ॐ नमो परमोहिजिणाणं । ॐ नमो सव्वोहिजिणाणं । ॐ नमो अणन्तोहिजिणाणं । ॐ नमो केवलिजिणाणं । ॐ नमो भवत्थकेवलिजिणाणं । ॐ नमो भगवओ अरहओ महई महावीरवद्धमाणसामिस्स सिज्झउ मे For Private & Personal Use Only ॥ श्री पाद लिप्तसूर प्रणीतः प्रतिष्ठा विधिः ॥ ।। ३२३ ।। www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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