________________
॥ कल्याण
कलिका.
खं० २ ।।
।। १८ ।।
Jain Education International
४ - प्रस्तुत प्रतिष्ठाकल्पोनो मूलाधार - उपर्युक्त ८ कल्पो पैकी कयो कल्प कया मूलग्रन्थ अथवा कल्पग्रन्थने आधारे बन्यो छे अथवा कया कल्पने अनुसरे छे. ए विषे विचार करवो आवश्यक छे.
+
अमारी पासेना कल्पोमां पांच प्रकारनी प्रतिष्ठाविषयक विधि परम्परा तरी आवे छे, नंबर २।३।७ नी विधि एक बीजाना विध अनुसरण करे छे. नंबर ५/६ आ वे कल्पो घणे भागे एक बीजाने अनुसरे छे, ज्यारे ११४१८ आ त्रण कल्पोनी विधि कोइ पण बीजा प्रतिष्ठा कल्पनी विधिथी संर्वाशे मलती आवती नथी.
नं. १ नो कल्प प्राचीन होड़ बीजा कल्पोथी घणी वातोमां जुदो पडे छे, जलयात्रानी विधि तेम ज अभिषेकनी विधि आमां आपी नथी, यद्यपि अभिषेकनी सर्वसामग्री एमां लखी दीधी छे.
आ कल्पमां प्रतिष्ठाना क्रियांगोमां विशेष महत्त्वनी वस्तु 'नन्द्यावर्त' नुं पूजन छे, नन्द्यावर्तना पूजन पछी आमां सीधुं ज प्रतिष्ठा विधान छे, दिक्पालो तेमज ग्रहोनुं पूजन के स्थापन आमां स्वतंत्र रीते आवश्यक गण्णुं नथी, नन्द्यावर्तमां ज ए बधांनो समावेश करीने प्रतिष्ठाविधि अल्प व्यय अने अल्प कष्टसाध्य करी दीधी छे.
निर्वाणकलिकानी प्रतिष्ठाविधि केटलेक अंशे दिगम्बरीय प्रतिष्ठापद्धतियोने मलती आवे छे, कदाचित् दिगम्बरीचार्योना प्रतिष्ठाकल्पोनुं उद्गम स्थान पण आ प्रतिष्ठापद्धति ज होय ते आश्चर्य जेतुं नथी, दिगम्बरोना अनेक ग्रन्थो श्वेताम्बर संप्रदाय मान्य सिद्धान्तोना आधारे बन्या छे, ते प्रमाणे आमां पण बनवुं विशेष संभवित छे.
आ प्रतिष्ठापद्धतिनो मूलाधार कोइ अतिप्राचीन प्राकृत प्रतिष्ठाकल्प छे, के जेनुं आ पद्धतिना लेखके 'आगम' कहीने बहुमान क
For Private & Personal Use Only
॥ प्रस्ता
वना ॥
।। १८ ।।
www.jainelibrary.org