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मिथ्यात्विक्रियाधिकारः।
भवग्गहणेणं सिझंति जाव अन्तं करेंति अत्येगइए दोघेणं भवग्गहणेणं सिझंति जाव अन्तं करेंति अत्थे गइए कप्पोवएसुवा कप्पाती एसुवा उववज्जंति। उक्कोसियणं भंते ! दंसणाराहणं आराहेत्ता कतिहिं भवग्गहणेहिं एवं चेव उक्कोसियणं भन्ते! चारित्ताराहणं आराहेत्ता एवंचेव नवरं अत्थेगहए कप्पातीएसुउववज्जति। मज्झिमियंणं भंते ! णाणाराहणं आराहेत्ता कतिहिं भवग्गहणेहिं सिझंति जाव अंतं करेंति ? गोयमा ! अत्यंगइए दोघेणं भवग्गहणेणं सिज्झइ जाव अन्तं करेंति तचं पुण भवग्गहणं नाइकमह । मज्झिमियं णं भन्ते ! दसणाराहणं आराहेत्ता एवंचेव एवं मज्झिमियं चरित्ताराहणंवि । जहन्नियंणं भन्ते ! गाणाराहणं आराहेत्ता कतिहिं भवग्गहणेहिं सिंज्झंति जाव अन्तं करेंति ? गोयमा ! अत्थेगइए तच्चेणं भवग्गहणेणं सिज्झइ जाव अन्तं करेंति सत्तभवग्गहणाई पुण नाइकमइ एवं दसणाराहणं वि एवं चरिताराहणं वि" (भगवती शतक ८ उ०१०)
- इस पाठमें ज्ञान, दर्शन और चारित्रकी उत्कृष्ट आराधना करनेवाले पुरुषको जघन्य एकभव और उत्कृष्ट दूसरे भवमें मोक्ष जाना कहा है तथा उत्कृष्ट ज्ञान और दर्शनकी आराधना करनेवालेको कल्प और कल्पातीत नामक स्थानोंमें ही देवता होना, एवं उत्कृष्ट चारित्रकी आराधना करनेवालेको अनुत्तर विमानमें ही जाना कहा है। इसी तरह इन तीनों आराधनाओंके मध्यम आराधकको जघन्य दो और उत्कृष्ट तीन भवमें, तथा इनके जघन्य आराधकको जघन्य तीन और उत्कृष्ट सात आठ भवमें मोक्ष जाना बतलाया है। इसका खुलासा करते हुए टीकाकारने लिखा है कि जिस ज्ञान दर्शनकी जघन्य आराधनासे उत्कृष्ट सात आठ भवमें मोक्ष जाना इस पाठमें बतलाया है वह ज्ञान और दर्शनकी आराधना चारित्राराधनाके साथ की जानेवाली समझनी चाहिए। परन्तु चारित्रकी आराधनासे रहित जघन्य ज्ञान और दर्शनकी आराधना नहीं । क्योंकि चारित्रकी आराधनासे रहित जघन्य ज्ञान और दर्शनकी आराधनासे, तथा श्रावकपनेके देशव्रतकी आराधनासे उत्कृष्ट असंख्य भव भी होते हैं। इस प्रकार जिस पुरुषमें चारित्रको आराधना नहीं है किन्तु ज्ञान और दर्शनकी जघन्य आराधना है वह पुरुष, तथा देशवती श्रावक, जघन्य तीन और उत्कृष्ट असंख्य भवमें मोक्ष प्राप्त करते हैं। इस न्यायसे जो
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