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अल्पपाप बहुनिर्जराधिकारः।
४९१ विवेचक और अन्यके मतसे जो टीकाकारने किया है उसका क्या प्रयोजन था ? अतः असूझता आहार देनेका हो फल इस टीका और पाठमें कहा है सूझता आहार देनेका फल नहीं, इसमें किसी प्रकार का भी संशय नहीं करना चाहिये।
___ अल्पतर पाप शब्दका अर्थ भी भ्रमविध्वंसनकारने अशुद्ध किया है । टीकाकारने साफ साफ लिख दिया है कि निर्जराकी अपेक्षासे अल्प पाप होना अल्पतर पाप शब्दका अर्थ है । दूसरी बात यह है कि वहु शब्दके साथ आये हुए अल्प शब्दका अभाव अर्थ होता भी नहीं है । जैसे उत्तराध्ययन सूत्रमें वहु शब्दके साथ अल्प शब्द आया है उसका निषेध या अभाव अर्थ न होकर "थोडा" अर्थ ही होता है वह पाठ यह है:
"वहुपएसगओ अप्पपएसग ओ पकरेइ" तथा भगवती शतक १ उद्देशा ९ में पाठ आया है-अप्पपएएगाओ वहुपएसगाओ" दशवैकालिक सूत्रमें पाठ आया है"अप्पंवा वहुवा” ठाणाङ्ग ठाणा चौथामें पाठ आया है-"चउन्विहे अप्पा वहुए पण्णते" भगवनी शतक १९ उद्देशा ३ और उक्त सूत्र शतक २५ उद्दशा ३ में पाठ आया है"कयरे कयरे हितो अप्पावा वहुयावा तुल्लावा" पन्नावणा सूत्रके तीसरे पदमें पाठ आया है "अप्पावा वहुयावा" उवाइ सूत्रमें पाठ आया है “अप्पतरोवा भुजतरोवा” इसी तरह शास्त्रमें अनेकों जगह वहुशब्दके साथ अल्प शब्द का प्रयोग हुआ है और सभी जगह उसका "थोड़ा" अर्थ हो होता है अभाव या निशेध अर्थ नहीं होता अलवत्ता जहां वहु शब्दके साथ न आकर अकेला अल्प शब्द आता है वहां कहीं कहीं उसका अभाव अर्थ भी होता है परन्तु वहु शब्दके साथ आये हुए अल्प शब्दका कहीं भी अभाव अर्थ नहीं होता । भगवती शतक ८ उद्देशा ६ में वहु शब्दके साथ अल्प शब्द आया है और उस पर भी उसके उत्तर तरप् प्रत्यय लगा है अत: वहां अल्प शब्दका अभाव अर्थ करना एकान्त मिथ्या है।
(बोल ३) (प्रेरक)
भ्रमविध्वंसनकारने अल्पपाप वहु निर्जरा प्रकरणके पहले बोलमें अफासुक अने सणीकका अर्थ सचित्त यानी जीववाली चीज किया है और यह अर्थ करके जनता को यह बतलानेकी चेष्टा की है कि श्रावक, साधुको सचित्त चीज यानी कच्चा पानी आदि कैसे दे सकता है ?
इसका क्या समाधान ? (प्ररूपक)
भगवती शसक ८ उद्देशा ६ के मूलपाठमें "अफासुअं अनेसणीज” यह
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