Book Title: Saddharm Mandanam
Author(s): Jawaharlal Maharaj
Publisher: Tansukhdas Fusraj Duggad

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Page 544
________________ ४९४ सद्धममण्डनम् । अफासुएणं अणेसणिज्जेणं असणं पाणं खाइमं साइमं पडिलाभित्ता भवइ एवं खलु जीवा अप्पाउयत्ताए कम्मं पकरेंति" (भ० श० ५ ० ६) अर्थ : हे भगवन् ! जीव, अल्प आयु कैसे बांधते हैं ? __(उत्तर) हे गोतम ! तीन कारणोंसे जीवको अल्प आयुका वन्ध होता है जीवहिंसा करने से, झूठ बोलने से और मुनिको अप्रासक अनेषणिक आहारादि देनेसे। ___इस पाठमें प्राणातिपात, मृषावाद और मुनिको असूझता आहार देनेसे अल्प आयुका वन्ध होना कहा है। यह अल्प आयु, क्षुल्लक भव ग्रहण रूप नहीं है किंतु दीर्घ आयुकी अपेक्षासे अल्प है यह पहले टीकाका प्रमाणके साथ लिख दिया गया है। यहां प्राणातिपात और मृषावाद भी सब प्रकारके नहीं लिये गये हैं किंतु मुनिको माहार देने के लिये जो आधाकर्मी आहार तय्यार किया जाता है उसमें जो प्रागातिपात होता है वह प्राणातिपात, और उस भाषा कर्मी आहारको देनेके लिये जो मिथ्या भाषण किया जाता है वह मिथ्या भाषण, इन्हींका ग्रहण है सब प्राणातिपात और सब मृषावादका ग्रहण नहीं है। इसका खुलासा ठाणाङ्ग सुत्रके पाठकी टीकामें किया है वह टीका यह है: ___"तथाहि प्राणानतिपात्याधाकर्मादिकरणतो मृपोक्त वा यथा अहो साधो ! स्वार्थ सिद्ध मिदं भक्तादि कल्पनीयं वो नशङ्का कार्योत्यादि" अर्थात् प्राणियों का विनाशके द्वारा आधाकर्मी आहार तय्यार करके झूठ बोल कर साधुको देना "अर्थात हे साधो ! यह अन्न हमने अपने लिये बनाया है यह आपका कल्पके योग्य है" इत्यादि मिथ्या बोल कर आधा कर्मी आहार साधुको देना, इस प्रकार जो झूठ बोला जाता है और आधा कर्मी आहार तय्यार करनेमें जो प्राणातिपात होता है उन्हीं प्रागातिपात और मृषावादसे शुभ अल्प आयुका वन्ध होना सम- ' झना चाहिये सब प्राणातिपात और मृषीवादसे नहीं। अतः भावती शतक ५ उद्देशा ६ के मूलपाठमें सभी प्राणातिपात और सभी मृपावादोंका ग्रहण करना एकान्त मिथ्या. समझना चाहिये। _यदि कोई कहे कि भगवती शतक ५ उद्देशा ६ के मूलपाठमें सामान्य रूपसे प्राणातिपात और मिथ्या भाषगका फल अल्प आयुका वध होना लिखा है, आधाकर्मी आहार तैय्यार करनेमें जो जीवहिंसा होती है और उसे साधुको देनेके लिये जो मिथ्या भाषण किया जाता है उन्होंसे अल्प आयुका वन्ध नहीं कहा है फिर आप यह किस प्रमाणसे कहते हैं ? तो इसका उत्तर यह है कि भगवती शतक ५ उद्देशा ६ के उक्त मूल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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