Book Title: Saddharm Mandanam
Author(s): Jawaharlal Maharaj
Publisher: Tansukhdas Fusraj Duggad

View full book text
Previous | Next

Page 545
________________ अल्पपाप बहुनिर्जराधिकारः । ४९५ पाठके निकटवर्ती पाठ में कहा है कि प्राणातिपात और मृषावादसे अशुभ दीर्घ आयुका वन्ध होता है । परन्तु एक ही कारण से परस्पर विरुद्ध दो कार्य नहीं हो सकते इसलिये टीकाकारने इस पाठकी टीकामें इसका निर्णय स्पष्ट रूपसे कर दिया है कि आधाकर्मी आहार तैयार करनेमें जो जीवहिंसा होती है उस जीव हिंसासे और झूठ बोलकर जो साधुको धाक आहार दिया जाता है उस मृषावाद से शुभ अल्प आयुका वन्ध होता है इनसे अतिरिक्त जो प्राणातिपात और मृषावाद है उनसे अशुभ दीर्घ आयुका बन्ध होता है अतः टीकाकारका किया हुआ निर्णय से इस पाठ में सभी प्राणातिपात और सभी मृषावादोंका ग्रहण न होकर आधाकर्मी आहार तैयार करनेमें जो जीवहिंसा होती है उसीका ग्रहण होता है । वह टीका यह है : : “यो जीवो जिनसाधुगुणपक्षपातितया तत्पूजार्थं पृथिव्याद्यारंभेण स्वभाण्डा सत्योत्कर्षणादिनाऽधाकर्मादिकरणेनच प्राणातिपातादिषु वर्तते तस्य वधादि विरति निरवद्यदाननिमित्तायुष्कापेक्षयेय मल्पायुष्कता समवसेया । अथनैवं निर्विशेषणत्वात्सूत्रस्य अल्पायुष्कत्वस्यच क्षुल्लकभवग्रहणरूपस्यापि प्राणातिपातादिहेतुतोयुज्यमानत्वादतः कथमभिधीयते सविशेषण प्राणातिपातादिवतो जीवस्य आपेक्षिकी चाल्यायुष्कतेति ? उच्यते - अविशेषण त्वेऽपिसूत्रस्य प्राणातिप तादेर्विशेषणमवश्यं वाच्यम् । यत इतस्तृतीयसूत्रे प्राणातिपातादितएव अशुभदीर्घायुष्कतां वक्ष्यति नहि सामान्यहेतौ कार्य्यवैषम्यं युज्यते सर्वत्रानाश्वास प्रसंगात् तथा “समणोवासरणं भन्ते ! तहारूवं समणं माहवा अफासुएणं असण ४ पडिलाभमाणस्स किं कज्जइ ? बहुतरिया निज्जग वज्जइ अप्पतरे से पावकम्मे कज्जइ” इतिवक्ष्यमाण वचनादवसीयते नैवेयं क्षुल्लकभवग्रहणरूपा अल्पायुष्कता नहिस्वल्पपाप बहुनिर्जरा निवन्धनस्यानुष्ठानस्य क्षुल्लकभवग्रहणनिमित्ततता संभाव्यते । अर्थ: जो जीव, जैन साधुओंके गुणके पक्षपातसे उनकी पूजा और सत्कार करनेके लिये पृथिवी काय आदिका आरम्भ करके अपने पात्र आदिको अयत्न पूर्वक रख और उठा कर आधा आहार तैयार करता है और आधाकर्मी आहार तैयार करके प्राणातिपात करता है उस पुरुषकी, प्राणातिपात रहित निरवद्य दानसे उत्पन्न होने वाली आयु की अपेक्षा से अल्प आयु वंधती है। यदि कोई कहे कि इस सूत्र में प्राणातिपात और मिथ्या भाषणसे अल्प आयु वन्ध होना कहा है परन्तु 'यह नहीं कहा है कि अमुक प्राणातिपात या अमुक मिथ्याभाषणसे अल्प मायु बंधती है । तथा यह भी नहीं कहा है कि दीर्घ आयुकी अपेक्षा अल्प आयु बंधती है परन्तु क्षुल्लक भव ग्रहण रूप अल्प आयु नहीं बंधती फिर यह किस प्रकार मान लिया जावे कि आधाकर्मी आहार तैयार करनेमें जो प्राणा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562