________________ 512 सद्धर्ममण्डनम् / द्वार बन्द करनेका कारण बता दिया गया अब उसकी जयणा बताई जाती है नेत्रोंके द्वारा नीचे और ऊपर देख कर साधु कपाट बन्द करते हैं और खोलते हैं। रातके समयमें अन्धकारमें रजोहरण या पूजनीके द्वारा पूज कर द्वारको खोलते हैं और बन्द करते हैं यह उक्त गाथाका अर्थ है। इस भाष्यमें साधुको कारणवश जयणाके साथ कपाट खोलने और बन्द करनेका स्पष्ट विधान किया है / वृहत्कल्प सूत्रके मूलपाठमें धान आदिकी राशिसे युक्त तथा ढके हुए घृतपूर्ण घृतादि पात्रोंके सहित मकानमें साधुको एकमास रहनेका कल्प बताया है। जिस मकानमें खुले हुए घृत मादिके पात्र रक्खे हैं उसमें भी स्थानाभाव की हालतमें 1-2 दिन रहने का विधान किया है / ऐसे मकानमें रहाहुआ साधु यदि कपाट बन्द न करे तो चोर और कुत्ते आदिके द्वारा गृहस्थाके घृतादिका विनाश होने पर साधुके लिये महान् अपवादका कार्या हो सकता है अतः ऐसे अवसर पर यत्नपूर्वक कपाट खोलना और बन्द करना साधुके लिये कोई अनुचित नहीं है। (बोल ७वां) (इति कपाटाधिकारः) समाप्त। THI Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com