Book Title: Saddharm Mandanam
Author(s): Jawaharlal Maharaj
Publisher: Tansukhdas Fusraj Duggad

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Page 556
________________ ५०६ ( प्रेरक ) शास्त्र यदि कहीं साधुको कपाट खोलने और बन्द करनेका विधान किया हो तो उसे बतलाइये । (प्ररूपक) कपाट खोलने और बन्द करनेका विधान अनेकों जगह पर मिलता है। कई यहां भी लिखे जाते हैं :-- सद्धर्ममण्डनम् "खाणी पावार पिहियं अप्पणा नाव पंगुरे कवाडं नो पणुलिज्जा उग्गहंसि अजाइथा,, ( दश वैकालिक अ० ५ उ० १ गाथा १८ ) अलसी काण्डकी टट्टीसे या पढ़ें आदिसे ढके हुए मकानको गृहस्वामीकी आशाके बिना साधु न खोले तथा धनीकी आज्ञा के बिना कपांट भी न खोके परन्तु गाढ़ कारण होनेपर गृहस्वामी की आज्ञा लेकर खोलने में कोई दोष नहीं है । इस गाथामें गृहस्वामीकी आज्ञा लेकर विधिपूर्वक कपाट खोलने का विधान किया गया है अत: अपने निवास स्थानके कपाटको विधिपूर्वक खोलने और बन्द करनेमें कोई दोष नहीं है । आचारांग सूत्रमें गृहस्थका द्वार खोलने का विधान किया गया है। वह पाठ यह है " से भिक्ख वा भिक्खूणीवा गाहावइ कुलस्स दुवारवाह कंटक दियाए परिपिहियं पेहाए तेसि पुव्वामेव उग्गहं अणणुन्नविय अपडिलेहिय अप्पमज्जिय णो अवगुणिज्जवा पविसेज्जवा णिक्खमेज्जवा तेसिं पुत्रामेव अणुन्नविय पडिलेहिय २ पमज्जिय तओसंजयामेव अवगुणेज्जवा पविसेब्जवा क्लिमेज्जया' ( आचारांग मूत्र ) अर्थ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat , ·1 भिक्षाके निमित्त गया हुआ साधु, गृहस्थके मकानको कंटकको शाखा से ढका हुआ देख गृहस्थकी आज्ञा बिना और बिना देखे तथा रजोहरणादिसे प्रमाजन किये बिना उसका द्वार खोलकर अन्दर न प्रवेश करे और न निकले क्योंकि इसमें गृहस्वामीका साधुपर क्रोधित होना संभव है परन्तु गृहस्वामीकी आज्ञा लेकर देख भाल करके और रजोहरणादिके दुवारा प्रमार्जन करके दुवार खोलकर प्रवेश करनेमें कोई दोष नहीं है। इस पाठ में गृहस्वामीकी आज्ञा लेकर प्रमार्जन आदि करके गृहस्थके मकानका द्वार खोलने का विधान किया गया है अतः कपाट खोलनेसे एकान्तरूपसे संयम की वि www.umaragyanbhandar.com

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