________________
सद्धर्ममण्डनम् तवस्सिं भिक्खू अतेणं तेणंति संकइ अहभिक्खूणं पूव्वोवदिट्ठा जाव णो चेतेज्जा । अर्थ :
साधु या साध्वी गृहस्थके संसर्गवाले मकानमें रहते हुए लघु नीति या बड़ी नीतिसे पीड़ित होकर बाहर जानेके लिये यदि उस मकानका द्वार खोले और कपाट खलनेकी प्रतीक्षामें बैठा हुआ चोर यदि उस मकान में प्रवेश कर जाय तो साधुको यह कहना नहीं कल्पता है कि यह चोर घरके अन्दर प्रवेश करता है या नहीं प्रवेश करता है, छिपता है या नहीं छिपता है, बोलता है या नहीं बोलता है, इसने यह चीज चुराई है या नहीं चुराई है, यह चोर है या चोरका परिचारक है, यह हथियार लिया हुआ है या नहीं लिया है, यह मार डालेगा, इसने यह कार्य किया है इत्यादि। ऐसा कहनेपर चोरपर आपत्ति आवेगी अथवा क्रोधित होकर वह चोर साधुको ही मार सकता है और महीं कहनेपर कदाचित् साधुको ही वह गृहस्थ चोर समझ लेवे तो इसमें महान् अनथ हो सकता है । अतः साधु और साध्वीको गृहस्थके संसर्ग वाले मकानमें नहीं रहना चाहिये।
इस पाठमें गृहस्थके मकानमें चोरके प्रवेश करनेपर होने वाले अनर्थके भयसे साधु और साध्वीको गृहस्थ के संसर्ग वाले मकानमें रहना वर्जित किया है कपाट खोलने और बन्द करनेके भयसे नहीं अतः इस पाठका नाम लेकर साधुको अपने निवास स्थान के कपाटको खोलने और वन्द करनेका निषेध करना अज्ञान मूलक समझना चाहिये ।
बोल ६ ट्ठा समाप्त (प्रेरक)
भ्रम विध्वंसककार बृहत्कल्प सूत्रका मूलपाठ लिखकर उसकी समालोचना करते हुए लिखते हैं :
"साध्वीने उघारे वारने रहणो नहीं किवाड़ न हवे तो चिलमिली बांधीने रहिणो पिण उघाडे वारणे रहिवो न कल्पे तिणरो ए परमार्थ शीलादिक राखवा निमित्त कीमाड जड़णो पिण शीलादिक कारण विना जड़नो उघाड़नो नहीं। अने साधुने तो उघारे द्वारे हीज रहिवो कल्पे इमि कह्यो"
(भ्र० पृ० ४६२) इसका क्या समाधान ? (प्ररूपक)
बृहत्कल्पसूत्रका मूलपाठ लिखकर इसका समाधान किया जाता है। वह पाठ यह है :
"नो कप्पइ निग्गंधीणं अवंगुयदुवारए उवस्सए वत्थए एगं पत्यारं आलोकिच्चा एगं पत्थारं वाहिकिचा ओहाडिय चिलमिलिया
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com