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सद्धर्ममण्डनम् ।
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तिपात होता है और मिथ्या भाषग करके जो साधुको आधाकर्मी आहार दिया जाता है उन्होंसे अल्प आयुका वन्ध होता है दूसरे पागातिपात और मिथ्या भाषणसे नहीं ?" तो इसका उत्तर यह है -यद्यपि इस सूत्रमें सामान्य रूपसे प्राणातिपात और मिथ्या भाषणसे अल्प आयुका वन्ध होना कहा है तथापि इनका विशेषण अवश्य कहना होगा अर्थात् आधाकर्मी आहार तैयार करनेमें जो प्राणातिपात होता है और झूठ बोलकर जो साधुको आधाकर्मी आहार दिया जाता है उन्हींसे अल्प आयुका वन्ध होता है यह कहना ही होगा क्योंकि इस सूत्रके तीसरे सूत्रमें कहा है कि "प्राणातिपात और मिथ्या भाषगसे अशुभ दीर्घ आयुका वन्ध होता है।" एक ही कारणसे परस्पर विरुद्ध दो कार्या उत्पन्न हों यह संभव नहीं है क्योंकि ऐसा माननेपर सभी जगह अव्यवस्था हो जायगी तथा भगवतो शतक ८ उद्देशा ६ के मूलपाठमें इसी अकल्पनीय अन्नके दानसे अल्पतर पाप और बहुतर निर्जरा होना कहा है इससे ज्ञात होता है कि इस पाठमें कही हुई अल्पायुकता क्षुल्लकभव ग्रहण रूपा नहीं है क्योंकि जिससे अल्पतर पाप ओर वहुतर निज रा होती है उस कायसे क्षुल्लकभव ग्रहण रूप अल्पायुष्कता होना संभव नहीं है। यह उक्त टोकाका अर्थ है।
यहां टीकाकारने स्पष्ट लिखा है कि आधा कमी आहार तैयार करने में जो प्राणातिपात होता है और मुनिको झूठ बोलकर जो आधाकर्मी आहार दिया जाता है उन्हीं प्राणातिपात और मिथ्या भाषणसे अल्प आयुका वन्ध होता है सभी प्राणातिपात और मिथ्या भाषगसे नहीं तथा अल्प आयु भी दीर्घ आयुकी अपेक्षासे कही गई है क्षुल्लकभव ग्रहण रूप नहीं। अत: सभी प्राणातिपात और मिथ्या भाषणका इस पाठमें ग्रहण करना और अल्प आयुसे निगोदकी आयु बताना तथा भगवती शतक ८ उद्देशा ६ के मूलपाठमें अल्पतर पाप शब्दका पापका अभाव अर्थ करना, यह सब एकान्त मिथ्या और मूल सूत्र तथा टीकासे विरुद्ध समझना चाहिये ।
(बोल ५वां समाप्त) (प्रेरक)
भ्रमविध्वंसनकार भगवती शतक १८ उद्देशा १० का मूलपाठ लिखकर लिखते हैं कि "ते अभक्ष्य आहार साधुने दीधां वहुतर निर्जरा किम होवे' इत्यादि ।
इसका क्या समाधान ? (प्ररूपक)
भगवती सूत्र शतक १८ उद्देशा १० के मूलपाठमें उत्सर्गमार्गमें अनेषणिक आहार साधुको अभक्ष्य कहा है कारण दशामें अभक्ष्य नहीं कहा है अतएव सुयगडांग
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