Book Title: Saddharm Mandanam
Author(s): Jawaharlal Maharaj
Publisher: Tansukhdas Fusraj Duggad

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Page 549
________________ ____ अल्पपाप बहुनिर्जराधिकारः। ४९९ इन गाथाओंमें आधाकर्मी माहार खानेवालेको एकान्तरूपसे कर्मोपलिन कहने का निषेध किया है इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि भगवती शतक १८ उद्दशा १० में जो अनेषणिक आहार साधुके लिये अभक्ष्य कहा है वह उत्सर्ग मार्गमें कहा है कारण दशामें नहीं । वृहत्कल्प सूत्र में सदोष आहार को एकान्त अभक्ष्य नहीं कहा है। वह पाठ यह है:__ "निगंथेणवा गाहावइकुलं पिण्डवायपडियाए अणुप्पवि?णं अण्णेरे अचित्ते अनेसणिज्जे पाणभोयणे पडिग्गाहित्तए सिया। अस्थिया इत्थ केइ सेहत्तराए अणुवठ्ठावित्तए कप्पड़ से तस्स दोऊया अणुप्पदाऊंवा गत्थिया इत्थ केइ सेहत्तरोए अणुवट्ठाविएसिया तं णो अप्पणा भुजेजा णो अण्णेसि अणुप्पदेना एगते बहुफोसुए थंडिले पडिलेहिता पमज्जित्ता परिहवेयवेसिया" (वृहत्कल्प) इस पाठका भाव यह है कि भिक्षार्थ गये हुए साधुको यदि कोई गृहस्थ अचित्त . अनेषणिक आहार लाकर देवे तो साधु वह अन्न अपने नवदीक्षित शिष्य यानी सामायक चरित्रवालेको खानेके लिये दे देवे यदि नवदीक्षित शिष्य न हो तो उस अन्नको स्वयं न खावे और किसी दूसरे साधुको भी न दे किन्तु एकान्त स्थानमें पूजन और प्रतिलेखन करके परठ देवे। इस पाठमें सदोष आहार नवदीक्षित शिष्यके खाने योग्य कहा है अत: सदोष आहारको एकान्त अभक्ष्य कहना शास्त्र विरुद्ध है। जब कि सदोष आहार एकांत अभक्ष्य नहीं है तब फिर सदोष आहार देने वाले श्रावकको एकान्त पाप कैसे हो सकता है ? यह बुद्धिमानोंको सोचना चाहिये । जीतमलजीने भी आधाकर्मी आहार नवदीक्षित शिष्यके खाने योग्य कहा है। बृहत्कल्प सूत्रकी जोड़के चौथो ढालमें जीतमलजी ने यह लिखा है: ___ "इमहि वेकोश उपरंत लेगयो आधाकर्मादि अचित्त रह्यो छै। नवदीक्षित तो तसुदीजे नहीं तर साहू पारिठणो कयो" अत: आधाकर्मी आहारको एकान्त अभक्ष्य कहना मिथ्या है। (बोल छट्ठा समाप्त) (प्रेरक) भ्रमविध्वंसनकारके मतानुयायी साधु, कारण पड़ने पर निस्य पिण्ड देना कल्प Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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