Book Title: Saddharm Mandanam
Author(s): Jawaharlal Maharaj
Publisher: Tansukhdas Fusraj Duggad

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Page 543
________________ अल्पपाप बहुनि जराधिकारः । ४९३ taraणरूप निगोदकी आयु होनेसे नहीं । अतः भगवती शतक ५ उद्देशा ६ के मूलपाठका नाम लेकर साधुको अप्रासुक अनेषणिक आहार देनेसे निगोदका आयु न्ध बताना अज्ञान है । साधुको अप्रासुक अनेषणिक आहार देनेसे भगवती शतक ५ उद्देशा ६ के मूलपाठ में शुभ अल्प आयु बंध होना लिखा है यह बात भगवती शतक आठ उद्देशा ६ के टीकामें भी कही है। वह टीका यह है:"शुभायुकतानिमित्त 'चाप्रा सुकादिदानस्याल्प युड कता फलप्रतिपादकसूत्रे प्राकू चर्चितम् " - अर्थात् साधुको अप्रासु अनेषणिक आहार देनेसे शुभ अल्प आयुका वन्ध होता है यह पहले बतला दिया गया है। यहां टीकाकारने स्पष्ट लिखा है कि साधुको अप्रासुक और अनेषणिक आहार देनेसे शुभ अल्प आयुका बन्ध होता है निगोदकी आयु पाना नहीं कहा है तथा भगवती शतक ५ उद्देशा ६ के पाठकी टीकामें भी यही बात कही है वह टीका यह है : - "अथवेहापेक्षिकी अल्पायुष्कता ग्राह्या यतः किल जिनागमाभिसंस्कृतमतयो मुनयः प्रथमवयसं भोगिनं कश्चन मृतंदृष्ट्वा वक्तारो भवन्ति नून मनेन भवान्तरे किंचिदशुभं प्राणिवधादि चासेवितम् अकल्प्यंवा मुनिभ्यो दत्तं येनायं भोग्यप्यल्पायुः संवृत्तहति । " अर्थात् भगवती शतक ५ उद्देशा ६ के मूलपाठमें मुनिको अप्रासूक अनेपणिक आहार देने से जो अल्प आयु प्राप्त होना कहा गया है वह दीर्घ आयुकी अपेक्षासे अल्प समझना चाहिये, क्योंकि जिनागमसे संस्कृत वुद्धिवाले मुनि, किसी भोगी पुरुषको पहली व्यवस्था में मरा हुआ देख कर कहते हैं कि इसने जन्मान्तर में प्राणिवध आदि अशुभ कर्मका अवश्य आचरण किया था अथवा मुनियोंके। अकल्पनीय अन्नादि दिया था जिससे भोगी होकर भी यह अल्पायु हुआ है। यहां टीकाकारने मूलपाठका आशय बतलाते हुए दीर्घ आयुकी अपेक्षासे अल्प आयु पाना लिखा है निगोदकी आयु पाना नहीं कहा है इस लिये भगवती शतक ५ उद्देशा ६ का नाम लेकर साधु को अप्रासुक और अनेषणिक आहार देने से निगोद की आयु बताना मिथ्या है। भगवती शतक ५ उद्देशा ६ का मूलपाठ यह है : "कण्हं भन्ते ! जावा अध्याउयत्ताए कम्मं पकरेंति ? गोमा ! तहिं ठाणेहिं जीवा अप्पाउयत्ताए कम्मं पकरेंति तं - जहा - पाणेअइवाइत्ता मुसंवदित्ता तहारूवं समर्णवा माहणंवा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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