________________
૮૮
सद्धमण्डनम् ।
अर्थ :
पर्व के दिन धर्मानुष्ठान करना पोषध कहलाता है वह दो प्रकारका है अपने इष्ट जनको भोजन देना ओर आहारका त्याग करना । इनमें इष्ट जनको भोजन देने रूप पोषधका अनुष्ठान करने के लिये जो शंखने कहा था उसे दिखलानेके लिये यह पाठ आया है ।
यहां मूलपाठ और उसकी टीकामें इष्ट जनको भोजन देना पोषध धर्मकी पुष्टि में कहा गया है इस लिये श्रावकको भोजनादि देकर पोषध धर्मकी पुष्टि करनेमें एकान्त पाप बतलाना मिथ्यादृष्टियोंका का है ।
जीतमलजीने प्रश्नोत्तर सार्धं शतकके ५८ में प्रश्नोत्तर में लिखा है। :-- "भगवती शतक १२ उद्देशा पहले शंख पोषली को जीमिने पोसह करस्यां ते किम् इति प्रश्न ?
(उत्तर) भगवती शतक ७ उद्देशा २ बारह व्रत में एग्यारहवां व्रतरोनाम " पोस होवासे को ते मांटे जीमिने पांच आस्रवना त्याग ते धर्मनी पुष्टि मांटे पोसह को ते व्रत दशमो छै पिण ग्यारमो नहीं ।"
"यहां जीतमलजीने भगवती शतक १२ उद्देशा पहलेका अभिप्राय बतलाते हुए भोजन करके पाँच त्रत्रका त्याग करनेको धर्मकी पुष्टिमें कहा है इस लिये अपने सहभाईको पांच आस्रव का त्याग करानेके लिये भोजन देनेसे एकान्त पाप कहना इनका अपने कथनसे ही विरुद्ध भाषण समझना चाहिये ।
( बोल ३४ वां )
( प्रेरक )
भ्रमविध्वंसन कार भ्र० पृ० १०४ के ऊपर ११ वीं पडिमाधारी श्रावकको आहार देनेसे एकान्त पापकी स्थापना करते हुए लिखते हैं :
"केतला एक एह वू प्रश्न पूछे जे पडिमाधारी श्रावकने दियां काई हुवै ? तेहनो उत्तर पडिमाधारी पिग देश व्रती छै तेहनें जेतला जेतला त्याग ते तो व्रत छै अने पारणे सूझता आहार नो आगार अत्रत छै ते अत्र सेवेछे ते पडिमाधारी तेहने धर्म नहीं तो जे अत सेवावण वालाने धर्म किम हुई। गृहस्थरा दानने साधु अनुमोदे तो प्रायश्चित्त आवे सो पडिमाधारी श्रावक पिण गृहस्थ छै तेहना दान अनुमोदनवालाने ही पाप हुवे तो देण वालाने धर्म किम हुवे "
इसका क्या समाधान ?
( ० पृ० १०४ )
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com