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सद्धर्ममण्डनम् ।
साधन भी रखने चाहिये अतः पूजनी आदि धर्मोपकरणों को अपनी शरीर रक्षाका साधन बतलाना मिथ्या है पूजनी आदि धर्मोपकरणोंके बिना जीवोंकी दया नहीं पाली जा सकती है इस लिये जीव रक्षार्थ श्रावक पूजनी रखते हैं । इस विषय में जीतमलजीने अढाई द्वीप से बाहर रहने वाले तिर्यच्च श्रावकों का दृष्टान्त देकर पूंजनी रक्खे बिना भी जीव दयाका पालन हो सकना कहा है, वह मिथ्या है । अढाई द्वीपसे बाहर रहनेवाले तिर्य्यन्च श्रावक, मनुष्य श्रावककी तरह श्रावकोंके बारह व्रतका शरीर से स्पर्श और पालन करते हों यह बात असम्भव है क्योंकि मनुष्य श्रावकों की तरह शरीरसे बारह प्रतों
स्पर्श और पालन करनेकी उनमें योग्यता नहीं है और शास्त्र में भी कहीं यह नहीं कहा है कि “तिच श्रावक मनुष्य श्रावककी तरह श्रावकोंके बारह व्रतका शरीरसे स्पर्श और पालन करते हैं" अत: अढाई द्वीपसे बाहर रहने वाले तिर्य्यब्च श्रावक, कई तोंमें श्रद्धा मात्र रखने से बारह व्रतधारी माने जाते हैं शरीर से स्पर्श और पालन करने से नहीं अतएव ज्ञाता सूत्रमें नन्दन मनिहारका जीव, मेढक भवमें वारह व्रत धारी कहा गया है । यदि मनुष्य श्रावकों की तरह बारह व्रतोंका शरीरसे स्पर्श और पालन करने से तिर्य्यच श्रावक बारह व्रत धारी होते तो नन्दन मनिहार का जीव मेढक भवमें कदापि बारह व्रतधारी नहीं कहा जाता क्योंकि मेढक योनिके जीवमें मुनिको दान देने रूप बारहवें तका शरीर से स्पर्श करने की योग्यता नहीं है तथा मेढक योनिके जीवमें, आहार को सचित्त पदार्थ पर रखने और सचित्तसे ढकने पर जो अतिचार आता है उ earth योग्यता भी नहीं है अतः तिय्र्यन्च श्रावक कई व्रतोंमें श्रद्धा मात्र रखने से बारह व्रतधारी माने जाते हैं मनुष्य श्रावककी तरह सभी व्रतोंका शरीरसे स्पर्श करनेसे नहीं । अढाई द्वीपसे बाहर रहने वाले तिर्यञ्च श्रावक, मनुष्य श्रावककी तरह पौषध व्रतका शरीर से स्पर्श और पालन करते हों इसमें कोई प्रमाण नहीं है तथा कहीं मूल पाठमें भी यह नहीं कहा है कि "अमुक तिर्य्यन्च श्रावकने पौषध व्रतका शरीर से स्पर्श और पालन किया था ” अतः तिर्य्यन्च श्रावकों के पास पूंजनी आदि धर्मोपकरण नहीं होने पर भी को क्षति नहीं है लेकिन मनुष्य श्रावक तो सभी व्रतोंका शरोरसे स्पर्श और पालन करता है इस लिये उसके पास पौषध व्रतमें होने वाले अतिचारकी निवृत्तिके लिये पूजनी आदि धर्मोपकरणोंकी अत्यन्त आवश्यकता है । उनके बिना पौषध व्रतका अतिचार जो कि पूजे बिना होता है नहीं टल सकता अतः मनुष्य श्रावकोंके पूजनी आदि धर्मोपकरणों को अपने शरीर रक्षाका साधन मान कर उन्हें अव्रतमें कायम करना अज्ञानियोंका का है । पूजनी आदि धर्मोपकरण व्रतके उपकारक और धर्मके अङ्ग हैं अतः उन्हें पापका साधन मानना मिथ्या है।
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