________________
२५२
सद्धममण्डनम् ।
यह भीषणजीकी प्ररूपणा एकान्त मिथ्या है शास्त्रमें कहीं भी अनुकम्पा को सावद्य नहीं कहा है और इस पाठकी चूर्णीमें भी रास्ता नहीं बतानेका कारण अनुकम्पा का सावध होना नहीं लिखा है प्रत्युत भावी उपद्रवकी आशङ्कासे रास्ता बतानेका निषेध करके अनुकम्पाका समर्थन किया है अत: असंयतिकी प्राणरक्षाको पाप और अनुकम्पा को सावध बताना इनका अज्ञान है।
यदि इनसे पूछा जाय कि कोई मनुष्यका झुण्ड आपके पूज्यजीके दर्शनार्थ ग्रामान्तरको जाना चाहे और वह आपसे मार्ग पूछे तो आप बतला सकते हैं या नहीं ? यदि कहें कि हम नहीं बतला सकते तो पूछना चाहिये कि क्या आपके पूज्यजीका दर्शन सावध है ? नहीं तो आप दर्शनार्थ जाने वालेको मार्ग क्यों नहीं बतलाते हैं ? यदि वह कहें कि “पूज्यजीका दर्शन तो सावद्य नहीं है परन्तु रास्ता बतलाना साधुका कल्प नहीं है इसलिये हम रास्ता नहीं बतलाते" तो सिद्ध हुआ कि जैसे आपके पूज्यजीका दर्शन सावद्य नहीं है तथापि रास्ता बताना कल्पमें न होनेसे आप रास्ता नहीं बताते उसी तरह किसी प्राणीका दुःख दूर करना, अथवा अनुकम्पा करना सावद्य नहीं है परन्तु रास्ता वताना साधुका कल्प न होनेसे साधु रास्ता नहीं बतलाते। यदि वह कहें कि पूज्यजीके दर्शनार्थ जाने वालेको निरवद्य भाषासे रास्ता बतानेमें कोई दोष नहीं है तो उसी तरह प्राणियों के कष्ट निवरणार्थ निरवद्य भाषासे रास्ता बता देनेमें भी दोष नहीं मानना चाहिये।
(बोल २२ वां समाप्त)
(प्रेरक)
__ भ्रमविध्वंसकसनकार भ्रम० पृ० १४९ पर ठाणा ग सूत्र ठांणा ३ का मूल पाठ लिखकर उसकी समाचोलना करते हुए लिखते हैं:-"अथ अठे पिण कयो हिंसादिक अकार्य करता देखि धर्म उपदेश देई समझावणो तथा अनवोल्यो रहे तथा उठि एकान्त जावणो कह्यो पिण जवरीसू छुड़ावनो न कह्यो तो रजोहरणथी मिनकीने डरायने' दुराने पंचावे त्यांने आत्मरक्षक किम कहिए"
(भू० वि० पृ० १४९) इसका क्या उत्तर ? (प्ररूपक)
___ठाणाङ्ग सूत्र ठाणा ३ उद्देशा ४ के पाठका नाम लेकर जीवरक्षाका निषेध करना मिथ्या है उस पाठमें मरते प्राणीकी प्राणरक्षा करनेका निषेध नहीं है। देखिये वह पाठ और उसकी टीका ये है:
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com