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प्रायश्चित्ताधिकारः।
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बतलाये हैं । जिन कल्प और स्थविर कल्प । शेष सभी कल्प इनमें ही अन्तर्भूत हैं इस लिये जिन कल्पी और स्थविर कल्पी ही शास्त्रीय मर्यादाके अधिकारी होते हैं, जो कल्प को उल्लंघन किया हुआ है वह नहीं होता। भगवान महावीर स्वामी दीक्षा लेनेके बाद ही कल्पातीत हो गये थे इस लिये जैसे केवल ज्ञान होने पर कल्पातीत और आगम व्यवहारी होनेसे उनके कार्यको शास्त्रीय कल्पानुसार दोषमें नहीं कह सकते हैं उसी तरह उनके छद्मस्थपनेके कार्यको भी दोषमें नहीं कह सकते । जैसे केवल ज्ञान होनेपर जामाली आदिको दीक्षा देने आदि कार्य भगवानने किये थे और वे कार्य उनके दोषमें नहीं थे उसी तरह उनके छप्रस्थपनेमें गोशालको दीक्षा देने तिल बताने आदि काय्यं भी दोष या चकनेमें नहीं थे । अतः गोशालकको तिल बताने दीक्षा देने आदि कार्य को भगवानके चूकनेमें प्रमाण देना अज्ञान है।
बोल १४ समाप्त (प्रेरक) ____ भगवान महावीर स्वामी छद्मस्थपनेमें आगम व्यवहारी और कल्पातीत थे इस लिये सूत्र व्यवहारीके कल्पानुसार उनके कार्यों को दोषमें नहीं कहा जा सकता यह ज्ञात हुआ, अब व्यवहारोंका भेद बतलाइये ? (प्ररूपक)
__ भगवती व्यवहार सूत्र और ठाणाङ्ग सूत्रमें व्यवहारका भेद बतलानेके लिये यह पाठ आया है____ "कइ विहेणं भन्ते ! नवहारे पन्नत्ते ? गायमा ! पंचविहे वनहारे पन्नत्ते तंजहा आगमे, सुए आणा, धारणा, जीए। जहासे तत्व आगमेसिया आगमेणं ववहारे पट्ठवेज्जा णोयते तत्थ :आगमेसिया जहा से तत्थ सुए सिया सुएणं ववहारं पट्ठवेजा। गोवाले तत्य सुएसिया जहा से तत्थ आणासिया आणाए ववहारं पट्ठवेज्जा। णोयसे तत्थ आणासिया जहा से तत्थ धारणासिया धारणाएणं ववहारं पट्टवेजा। णोयसे तत्थ धारणासिया जहा से तत्थ जीएसिया जीएणं ववहारे पट्टवेबा".
(भग० श० ८ व्यवहार उ० १० ठाणाङ्ग ठाणा ५)
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