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सद्धर्ममण्डनम् ।
इसका विधान किया है । अत: निशीथ उद्देशा १३ का नाम लेकर जीवरक्षा करनेमें पाप का स्थापन करना एकान्त अज्ञान समझना चाहिये । इस विषयका विशेष रूपसे स्पष्टीकरण अनुकम्पाधिकारके २५ वें बोलमें किया गया है। इस लिये यहां बहुत संक्षेपसे लिखा गया है।
[बोल ५ वां समाप्त ]] (प्रेरक)
गृहस्थसे साता पूछना और उसका व्यावच करना गृहस्थ के लिये अनाचार नहीं है यह ज्ञात हुआ। परन्तु श्रावकके लिये श्रावकके व्यावचका विधान कहीं शास्त्रमें किया हो तो उसे बतलाइये। (प्ररूपक)
उवाई सूत्रके मलपाठमें श्रावकके लिए श्रावकके व्यावचका विधान किया गया है वह पाठ यह है
"सेकिंतं वेयावचे, दसविहे पन्नत तंजहा-आयारिय वेयावचे, उवज्झाय वेयावचे, सेह वेयावच्चे, गिलाण वेयावचे, तवस्ति वेयावचे, थेर वेयावच्चे, साहम्मिय वेयावच्चे, कुल वेयावच्चे, गण वेयावचे , संघ वेयावच्चे,"
( उवाई सूत्र ) अर्थ :
अर्थात् व्यावच दश प्रकारके कहे हैं।
आचार्टाका व्यावच करना, उपाध्यायका व्यावच करना, नवदीक्षित शिष्यका व्याघच करना, रोगादिसे पीडित हुएका व्यावच करना, तपस्वीका व्यावच करना, स्थविर का व्यावच करना, साधर्मिक का व्यावच करना, गणका व्यावच करना, कुलका व्यावच करना, और संघ का व्यावा करना। यह उक्त गाथाका अर्थ है।
यहां दश प्रकारके व्यावचोंमें साधर्मिक व्यावच कहा गया है और श्रावकसे श्रावकका व्यावच किया जाना भी साधर्मिक व्यावच है क्योंकि साधुका साधर्मिक जैसे लिङ्ग और प्रवचन के द्वारा साधु होता है उसी तरह श्रावक का साधर्मिक प्रवचन के द्वारा श्रावक भी होता है। व्यवहार सूत्र दूसरे उह शे के भाष्य में यह गाथा लिखी
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